Thursday, June 1, 2017

आई एम नॉट अ गुड गर्ल....ओके?


अठारह बरस पहले जब शादी के वक़्त विदा हुई थी तो रो-रोकर धरती हिला दी थी...कई महीनों तक उदासी साथ लिए घूमती रही...हालाँकि माँ उसी शहर में थीं जिसमें मैं, यानी लखनऊ ही. फिर भी यह कहना या सुनना ही अजीब लगता था कि 'माँ के घर जा रही हूँ' या 'आई हुई हूँ...' क्योंकि शादी के पहले घर का एक ही अर्थ होता था...माँ का एक ही अर्थ होता था...

माँ से बिछुड़ना हमेशा विदाई की याद दिला देता है...'इत्ती बड़ी हो गयी हो अब भी रोती हो' अब बेटी कहती है...विदाई के वक़्त यही बात मुझसे दस बरस छोटे भाई ने कही थी...लगता है मैं कभी बड़ी नहीं होउंगी...कम से कम माँ को लेकर तो कभी नहीं...


माँ मजबूत हैं, वो रोती नहीं...रोने पर फटकारती हैं, गले नहीं लगातीं...वो मुझे मजबूत बनाना चाहती होंगी...लेकिन मैं रही रुतड ही...आज माँ को फिर से स्टेशन के लिए रवाना करते हुए एक हुडक कलेजे में उभरी जो कई दिनों से भीतर ही भीतर घुमड़ रही थी शायद...

माँ मेरे पास रह सकें इसलिए पापा ने अकेले रहना सीखा वो भी इस उम्र में...परिवार की यही ताकत है...दूर रहकर भी एक दूसरे के साथ खड़े रहने की ताकत. माँ आज लखनऊ गयी हैं पापा के पास...फिर लंदन जाएँगी भाई भाभी के पास....फिर लौट आएँगी मेरे पास....सब कुछ अच्छा है फिर भी माँ के बिना घर अच्छा नहीं लगता...

बिना डांट खाए दिन बीतेगा अब...ये भी कोई बात हुई....ओके ओके, कोई मत समझाओ...आई एम नॉट अ गुड गर्ल....लव यू माँ...

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