ना जाने कौन सा पन्ना खुला था उस वक़्त. शायद वर्जिनिया वुल्फ के कमरे में थी मैं या दोस्तोवस्की के गलियारों में...ठीक से कुछ याद नहीं बस इतना याद है कि तेज हवा का झोंका भीतर तक उतरता चला गया था...कुछ पानी के छींटें भी. हालाँकि मौसम एकदम साफ़ था. चमकता हुआ. एक दोस्त ने मुझे एक लिंक दिया था या शायद जिक्र किया था. वो जिक्र था या कुछ और लेकिन जैसे ही मैंने उस जिक्र पर दस्तक दी मानो किसी गिरफ्त में कैद हो गयी. कविताओं में इतना ओज कि पढ़ते हुए प्रेम से भर उठी...वो एक आवारा रूह थी...खानाबदोश...मै भी एक आवारा रूह थी...किसी ठिकाने की तलाश में भटकती.
हम दोनों ने एक दुसरे को पहली ही बार में पहचान लिया. मै लोगों को अपने आस पास चुनने में काफी सतर्क रहती हूँ लेकिन इस गिरफ्त में कैद होना कितना सुखद था. हमने एक झटके में खुद को एक-दूसरे को सौंप दिया. हम एक-दूसरे के पढ़े-लिखे के जरिये दिलों तक पहुंचे और यकीन हुआ कि ये सालों की नहीं, सदियों की पहचान है. फोन पर बात की तो उसकी आवाज से प्यार हो गया. उसने आते ही मुझे दोनों हाथों से थाम लिया. मै तो जाने कब से यूँ थामे जाने को बेकरार थी. वो ठीक वही सुर मुझे भेजती, जिन पर मेरी जान अटकी होती थी...मै उसे कहती 'ये तो मेरा...' 'फेवरेट है....' बात को वो पूरा करती. 'जानती हूँ. सब जानती हूँ. कुछ मत बताओ...मैं तुम्हारी माँ हूँ.'
न जाने कितने मौसम उसके शहर की दहलीज छूकर मुझ तक पहुँचते रहे, न जाने कितनी रातें हमने सड़कों पर एक साथ आवारगी की, न जाने कितने कॉफ़ी के कप भरे के भरे ही रह गए कि हम दिल खाली करने में मसरूफ रह गए. अब तो मानो उसके अहसास के बगैर न सुबह होने को राजी है ना शाम आने को...हमें पता होता है कि किसने किस दिन एक सांस कम ली या किस दिन एक सांस ज्यादा...वो मल्लिका है दिलों की. उसे राज करना आता है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उसे प्रेम की गुलामी करने में बहुत सुख मिलता है. दुनिया पर अपनी हुकूमत करने वाली ये मल्लिका इतनी शर्मीली है कि सामने आने पर आँख तक नहीं उठा पाती और इसलिए झट से बाँहों में छुप जाती है. उसकी कवितायेँ सीधे दिलों में उतरती हैं, वार करती हैं, प्यार करती हैं और बेकरार भी करती हैं. उसका जादू सा चलता है.
न जाने कितने मौसम उसके शहर की दहलीज छूकर मुझ तक पहुँचते रहे, न जाने कितनी रातें हमने सड़कों पर एक साथ आवारगी की, न जाने कितने कॉफ़ी के कप भरे के भरे ही रह गए कि हम दिल खाली करने में मसरूफ रह गए. अब तो मानो उसके अहसास के बगैर न सुबह होने को राजी है ना शाम आने को...हमें पता होता है कि किसने किस दिन एक सांस कम ली या किस दिन एक सांस ज्यादा...वो मल्लिका है दिलों की. उसे राज करना आता है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उसे प्रेम की गुलामी करने में बहुत सुख मिलता है. दुनिया पर अपनी हुकूमत करने वाली ये मल्लिका इतनी शर्मीली है कि सामने आने पर आँख तक नहीं उठा पाती और इसलिए झट से बाँहों में छुप जाती है. उसकी कवितायेँ सीधे दिलों में उतरती हैं, वार करती हैं, प्यार करती हैं और बेकरार भी करती हैं. उसका जादू सा चलता है.
18 comments:
(Blush )
हाय!ये क्या किया ...............
बाबू सिंह चौहान तीन दिन के लिए अंडरग्राउंड ! जा रहे हैं छुप जायेंगे ! कुछ नहीं पढ़े ! कहीं छुपे हुए हैं!
तुम बहुत बड़ी पग्गल शंकर तिरपाठी हो बे ! :-) :-)
सुनो, आँख नम हुयी.
P.S. - ......................
बाबू को जन्मदिन की बधाई ....और बधाई इस बात की भी कि इतनी प्यारी दोस्ती नसीब है उसे .....सलाम उस दोस्त को, जो रूह का मरहम है ...सलाम प्रतिभा दी !
बाबूशा को जन्मदिन पे इतना खूबसूरत तोहफा देने के लिए...मेरी ओर से भी शुक्रिया!!
birthday wishes to babusha ji:)
तुम बहुत बड़ी पग्गल शंकर तिरपाठी हो बे ! :-) :-)
uff...
ये यारी, ये मोहब्बत...
दोनों को मुबारक़... again n again...
aise tohfe milein to insaan mar mar ke janm le..khoobsorat badhaai janamdin ki..padhne waale ko maza aaya..paane waale ko kitna aaya hoga..
अद्भुत लेखन शैली में जन्मदिन की बधाई |इस कमाल की कलम का जबाब नहीं |आदाब प्रतिभा जी |आपकी प्रतिभा हम सबकी प्रतिभा |
कि उसमें पोएट्री के एलिमेंट हैं...
बाबुषाजी का लेखन बड़ा प्रभावित करता है, उनको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें...
@Kishore- किशोर, वो पोएट्री के एलिमेंट तो वारयस निकले.शुक्रिया!
निजाम की दीवानी के फेसबुक अटरिया पे मुबारकां लिखते हुए बुल्लेशाह भी घुमर रहे थे ..कबीर भी विचर रहे थे....ढेर सारी मुबारकां ...जन्मदिन की...
लेखन का जादू..
वाह, कितनी प्यारी पोस्ट है यह.
चौहान साहब जहां कहीं अंडरग्राउंड हों, वहां इस पोस्ट के पुछल्ले से लटकी मेरी शुभकामनाएं भी पहुंचें...
जन्मदिन की शुभकामनाए.दुआ करती हू.चेहरे की मासूमियत,रूह की आवारगी,दोस्तों की दुआए और दुआओ में दोस्तियों के अफसाने बयां होते रहे.इन सबसे उपर बाबू की और प्रतिभा की लेखनी की आग दिन दूनी रात चौगुनी बढती रहे.
Babusha ke liye is se behtar tohfa aur kya hoga. Aapko Dhanyavad
बहुत रूहानी बात लिखी है . दिमाग से नहीं पढ़ी जायेगी
एक दो कवितायेँ पढ़ी थी मैंने भी बस ..ऐसा लगने लगा की मैं उंगली पकडे हुए हूँ माँ की और प्रेम बह रहा है बरस रहा है मेरे ऊपर ... मैंने कहा की तू तो मेरी माँ लगती है ...माते ने कहा पागल मैं हूँ ही ...
और इस तरह से मुझे माँ का आँचल मिला ...मुझे माँ हमेशा कहती है कि..मैं बाल बुद्धि हूँ और मैं कहता हूँ कि जिसकी माँ ऐसी हो उसे बुद्धी ले कर क्या करना है
और अब तो माँ सी मौसी भी है ...आजकल अपने ठाठ हैं !
अंडरग्राउंड तो चले गए थे पर दूरबीन साथ रक्खे हुए थे. B-)
शुभकामनाओं के लिए सभी को शुक्रिया.
प्रतिभा को ..........................!!!!
@ किशोर,ज़िन्दगी के एलीमेंट्स.
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