Wednesday, December 29, 2010

जाने कितने बिनायक सेन और चाहिए

हमें फख्र है
तुम्हारे चुनाव पर साथी
कि तुमने चुनी
ऊबड़-खाबड़
पथरीली राह.

हमें खुशी है कि
तुमने नहीं मानी हार
और किया वही,
जो जरूरी था
किया जाना.

तुम्हें सजा देने के बहाने
एक बार फिर
बेनकाब हुई
न्याय व्यवस्था.
जागी एक उम्मीद कि
शायद इस बार
जाग ही जाएं
सोती हुई कौमें.

तुम्हें दु:ख नहीं है सजा का
जानते हैं हम,
तुमने तो जान बूझकर
चुना था यही जीवन.
दु:ख हमें भी नहीं है
क्योंकि जानते हैं हम भी
सच बोलने का
क्या होता रहा है अंजाम
सुकरात और ईसा के जमाने से.

हमें तो आती है शर्म
कि लोकतंत्र में
जहां जनता ही है असल ताकत
जनता ही कितनी बेपरवाह है
इस सबसे.

न जाने कितने बलिदान
मांगती है जनता
एकजुट होने के लिए,
एक स्वर में
निरंकुश सत्ता के खिलाफ
बिगुल बजाने के लिए,
खोलने के लिए मोर्चा
न जाने कितने बिनायक सेन
अभी और चाहिए.

6 comments:

Rangnath Singh said...

तेरे ग़म को जाँ की तलाश थी तेरे जाँ-निसार चले गये
तेरी राह में करते थे सर तलब सर-ए-राह-गुज़ार चले गये

Ashok Kumar pandey said...

हम सब विनायक सेन हैं…हम सब को वही सज़ा दो!

राजेश उत्‍साही said...

हम भी साथ साथ हैं।

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर कविता।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर प्रेरणाप्रद ........ सुन्दर रचना...

संजय भास्‍कर said...

आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......