जैसे तिल में तेल है ज्यों चकमक में आग
तेरा सांई तुझ में है तू जाग सके तो जाग.
माया मरी न मन मरा मर -मर गए शरीर
आशा तृष्णा न मरी कह गए दास कबीर।
कबिरा खड़ा बाजार मेंमांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्तीना काहू से बैर।
कबीर मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर
पाछे -पाछे हरि फिरे कहत कबीर-कबीर।
पोथी पढि़-पढि़ जग मुआपंडित भयो न कोई
ढाई आखर प्रेम के जोपढ़े सो पंडित होए।
दु:ख में सिमरन सब करें,सुख में करे न कोय
जो सुख में सिमरन करे,तो दु:ख काहे को होय।
अकथ कहानी प्रेम की कछु कही न जाय
गूंगे केरी सरकरा बैठे मुस्काय।
चिंता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।
तेरा सांई तुझ में है तू जाग सके तो जाग.
माया मरी न मन मरा मर -मर गए शरीर
आशा तृष्णा न मरी कह गए दास कबीर।
कबिरा खड़ा बाजार मेंमांगे सबकी खैर
ना काहू से दोस्तीना काहू से बैर।
कबीर मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर
पाछे -पाछे हरि फिरे कहत कबीर-कबीर।
पोथी पढि़-पढि़ जग मुआपंडित भयो न कोई
ढाई आखर प्रेम के जोपढ़े सो पंडित होए।
दु:ख में सिमरन सब करें,सुख में करे न कोय
जो सुख में सिमरन करे,तो दु:ख काहे को होय।
अकथ कहानी प्रेम की कछु कही न जाय
गूंगे केरी सरकरा बैठे मुस्काय।
चिंता ऐसी डाकिनी काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।
6 comments:
प्रतिभाजी बहुत सुन्दर दोहे है बधाई आभार्
sundar sanchay!!
प्रतिभ जी
बहुत ही चुनिन्दा दोहो का संग्रह प्रस्तुत किया है....
बधाई....
बहुत शुक्रिया
सुन्दर दोहे पढ़वाए आपने
वीनस केसरी
इन सदविचारों को जीवन में उतारने की जरुरत है…कबीर के विचार आज और अधिक मह्त्वपूर्ण बन जाते हैं।
बहुत सुंदर दोहे .. पढाने के लिए धन्यवाद।
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