गुलज़ार वाकई स्वप्निल कवि हैं.
कांच के ख्वाब हैं बिखरे हुए तनहाई में ख्वाब टूटे न कोई जाग न जाये देखोसपनो का बहुत अच्छे ढंग से मानवीकरण किया है बधाई
Post a Comment
2 comments:
गुलज़ार वाकई स्वप्निल कवि हैं.
कांच के ख्वाब हैं
बिखरे हुए तनहाई में
ख्वाब टूटे न कोई
जाग न जाये देखो
सपनो का बहुत अच्छे ढंग से मानवीकरण किया है
बधाई
Post a Comment