Tuesday, January 13, 2009

अपने अपने इमरोज़

मिले किसी से ऩजर तो समझो ग़जल हुई॥रहे न अपनी खबर तो समझो ग़जल हुई..अपने हेडफोन से उभरती ग़जल की इन लाइनों में सर से पांव तक डूबा वह और कोई नहीं एक बाइस बरस का लड़का था। नाम था..छोड़िये नाम में क्या रखा है. मैंने महसूस किया कि उसके जिस्म के सारे रोएं खड़े थे. मानो ग़जलकार के स़जदे में खड़े हों. उससे बात हुई, तो मालूम हुआ कि उसके जिस्म के सारे रोएं उसकी उस प्रेमिका के सजदे में खड़े थे, जो अब उसे छोड़कर जा चुकी थी. उसकी पलकें नम थीं. उसने उन्हीं नम आंखों से पूछा, क्या ऐसी होती है मोहब्बत? नमी में नाराजगी भी शामिल हो चुकी थी. ऐसी माने..? मैंने पूछा.. वो मुझे छोड़कर चली गई..वो फफक उठा। मैंने उससे पूछा इमरोज का नाम सुना है? उसने पूछा कौन इमरोज॥? फिर ़जरा ठहरकर बोला अमृता वाले इमरोज. हां वही, मैं हंस दी. हां सुना है, वो बोला. मोहब्बत क्या है इसे जानने के लिए कभी इमरोज की गलियों से जरूर गुजरना चाहिए. इमरोज़ या अमृता..? वह अमृता पर कायम था. इमरोज़..मैं इमरोज पर अड़ी थी. इमरोज के करीब जाकर मोहब्बत करने का सलीका समझ में आता है. प्यार के लिए यह हरगिज जरूरी नहीं है कि प्यार हासिल भी किया जाए. यह तो एक इबादत है. सामने वाले का प्यार भी आपके हिस्से में आ जाए तो आपकी तकदीर, वरना इबादत जारी रखिये. इबादत का सुकून भला कौन छीन सकता है आपसे. अमृता सारी उम्र साहिर के नाम की माला जपती रहीं और इमरोज इस बात से बेफिकर अमृता के ख्याल में, उनकी परवाह में और आखिरी दिनों में उनकी परवरिश में डूबे रहे. आज हम एक बेमिसाल कलाकार को अमृता वाले इमरोज के रूप में ही तो जानते हैं. यह होता है प्रेम. अमृता के मरने के बाद भी इमरोज उनके प्यार की एक-एक बूंद को जी रहे हैं. यह होता है प्यार और हम चंद मुलाकातों के सिलसिलों के टूटने को मोहब्बत का टूटना समझ लेते हैं. आओ एक पता देती हूं ऐसी दुनिया का, जहां मोहब्बत के नये तर्जुमान खुलते ऩजर आयेंगे. http://amritapritamhindi.blogspot.com यहां जाकर हम सब मोहब्बत को समझने का, उसे निभाने का सलीका सीख सकते हैं. यह ब्लॉग बेहद प्यार से बनाया गया है. ब्लॉगर रंजू भाटिया बेहद क्रिएटिव हाउस वाइफ हैं. उनके क्रिएशन ने उनके ढेरों फैन्स बनाये हैं. यहां जिंदगी बेहद खुलेपन से संवरती है. अनगिनत सवालों के जवाब बहते ऩजर आते हैं. अमृता की फैन रंजू अपने हुनर से लोगों को न सिर्फ अमृता से जोड़ती हैं, बल्कि जिन्दगी को देखने की नयी ऩजर देती हैं. शब्द कब भावनाओं के हवाले होकर शब्द नहीं रह जाते, दस्तावेज हो जाते हैं, इस ब्लॉग पर बखूबी समझा जा सकता है. आइये, मोहब्बत का नाम लेकर चलें रंजू भाटिया के साथ अमृता प्रीतम की दुनिया में और ढूंढ लायें अपने-अपने इमरोज.
आईनेक्स्ट में प्रकाशित ब्लॉग पर एक टुकडा...

3 comments:

अभिषेक मिश्र said...

सही कहा अपने.
प्यार नहीं पा जाने में, है पाने के अरमानों में
पा लेता तो हाय न इतनी प्यारी लगती मधुशाला.
(Pls remove unnecessary word verification)

mehek said...

bahut achha laga lekh

विजय तिवारी " किसलय " said...

पूरा आलेख पढ़ा , अच्छा लगा
आपने सही फरमाया है प्रतिभा जी
- विजय