एक परिंदा धरती के छोर से उडा तो उड़ता ही गया।
रुका ही नहीं। जिंदगी की तरह चलता ही गया।
रस्ते में उसे कई मनोरम द्रश्यों ने
रोका। कई समंदर, कई बगीचे, कई लुभावने मंजर आए
लेकिन वो रुका नही, उड़ता गया। भूख, प्यास भी उसका
रास्ता रोक नहीं पाई। वो बढ़ता गया और एक दिन
उसने आसमान छु लिया। कुछ लोगों ने बताया की ये
वही परिंदा है कुछ दिनों पहले घायल होकर पड़ा था।
जिसे पंख कुछ जालिमों ने कतर डाले थे। पर इसकी हिम्मत
तो चकित करने वाली है। यह परिंदा धरती से आसमान की तरफ़
से इस उम्मीद से उड़ता गया ताकि ढूंढ सके खुशियों
की वो सौगात जिसे ईश्वर ने कहीं छुपा रखा है हमारा ही लिए
क्योंकि पिछले बरस के घाव बड़े गहरे हैं हम सबके
सीने पर। इस बरस हमें ज्यादा हिम्मत, ज्यादा सपनो और
ज्यादा खुशियों की तलाश है। तभी तो कह पाएंगे
हम एक दूसरे को nayaa saal mubaarak ho....
2 comments:
bahut hi badiya. yahee josh or junoon chahiye manjil pane ke liye. naya saal bahut bahut mubarak ho aapko.
प्रतिभा जी नमस्कार
आपके पावन और महत्वपूर्ण विचारों के लिए साधुवाद........
इस बरस हमें ज्यादा हिम्मत, ज्यादा सपनो और
ज्यादा खुशियों की तलाश है। तभी तो कह पाएंगे
हम एक दूसरे को नया साल मुबारक हो ...
आपका
- विजय
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