Monday, August 31, 2020

रौशनी



दूधिया रौशनी के झरने ने
भर लिया आलिंगन में

पीपल की पत्तियों सा
घना होता गया मौन

हरियाली के मैदान में
कुलांचे भरने लगा हृदय

कैक्टस फूलों से भर उठे
मुस्कुराने लगे बबूल के फूल

रात अमावस की थी लेकिन
एक जरा थामना भर था अपना हाथ
रौशनी ही रौशनी बिखरने लगी.


3 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 1 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



Kamini Sinha said...

रात अमावस की थी लेकिन
एक जरा थामना भर था अपना हाथ
रौशनी ही रौशनी बिखरने लगी.
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ,सादर नमस्कार आपको

मन की वीणा said...

सुंदर आशावादी चिंतन।