बहुत दिन हुए
किसी झरे हुए पत्ते को
हथेली पर रखकर
देर तक निहारा नहीं
बहुत दिन हुए
किसी सूखी नदी से नहीं सुना
पानी की स्मृति का गीत
बहुत दिन हुए
किसी सपने से टकराकर
चोट नहीं खाई
बहुत दिन हुए
हथेली पर रखकर
देर तक निहारा नहीं
बहुत दिन हुए
किसी सूखी नदी से नहीं सुना
पानी की स्मृति का गीत
बहुत दिन हुए
किसी सपने से टकराकर
चोट नहीं खाई
बहुत दिन हुए
किसी ने दिल नहीं तोड़ा
कोई छोड़कर गया नहीं
बहुत दिन हुए
किसी कविता ने माथा नहीं सहलाया
गले से नहीं लगाया
बहुत दिन हुए कोई दुख
बगलगीर होकर गुजरा नहीं
बहुत दिन हुए कोई दुख
बगलगीर होकर गुजरा नहीं
कितना सूना है जीवन
बहुत दिनों से....
बहुत दिनों से....
3 comments:
बहुत सुन्दर
सुंदर कविता, गम की तलाश में निकलता है दिल वही, ख़ुशी के फूल खिलते दिन-रात जिसके घर
बहुत दिनों तक इन सबके बगैर सूना सा हो ही जाता है जीवन..
बहुत ही सुन्दर ।
Post a Comment