Friday, June 21, 2024

बहुत दिन हुए


बहुत दिन हुए 
किसी झरे हुए पत्ते को
हथेली पर रखकर
देर तक निहारा नहीं

बहुत दिन हुए
किसी सूखी नदी से नहीं सुना
पानी की स्मृति का गीत

बहुत दिन हुए
किसी सपने से टकराकर
चोट नहीं खाई

बहुत दिन हुए 
किसी ने दिल नहीं तोड़ा 
कोई छोड़कर गया नहीं 

बहुत दिन हुए 
किसी कविता ने माथा नहीं सहलाया 
गले से नहीं लगाया 

बहुत दिन हुए कोई दुख
बगलगीर होकर गुजरा नहीं

कितना सूना है जीवन
बहुत दिनों से....

3 comments:

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर

Anita said...

सुंदर कविता, गम की तलाश में निकलता है दिल वही, ख़ुशी के फूल खिलते दिन-रात जिसके घर

Sudha Devrani said...

बहुत दिनों तक इन सबके बगैर सूना सा हो ही जाता है जीवन..
बहुत ही सुन्दर ।