Monday, September 4, 2023

हमकदम

एक रोज
ढलती शाम के समय
समंदर के किनारे
हमने अपने कदमों
के निशान भर
नहीं बोये थे
बोयी थी उम्मीद
कि दुनिया में
सहेजी जा सकती है
प्रेम की ख़ुशबू।

3 comments:

Onkar said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति

Anonymous said...

Sundar

Anilg.in said...

Sundar