Wednesday, September 27, 2023

धरती को बहुत प्रेम चाहिए


न जाने कितनी सदियों पहले देखा होगा ये ख़्वाब कि सामने समंदर होगा एक रोज़ मन में होगी डूब जाने की ख़्वाहिश। प्रेम में डूब जाने की। समंदर खारा सही लेकिन खरा प्रेमी है। उदास नहीं करता। उसकी उदात्त लहरें जीवन की तमाम लालसाओं समेत, तमाम खर पतवार समेत समेट लेती हैं पूरा का पूरा वजूद। वो आपको आज़ाद करता है। मुक्ति की लालसा से भी। आप समंदर का किनारा पकड़िए वो आपको जीवन का मध्य पकड़ा देगा।

मैंने हमेशा समंदर के करीब जाकर जीवन को कुछ और जाना है। मैं पहाड़ में रहती हूँ और समंदर से प्यार करती हूँ। जंगलों में फिरना मेरा शगल है और आसमान पर हमेशा मेरी नज़र टिकी रहती है। माँ ने हमेशा सिखाया कि नज़र आसमान पर हो और पाँव धरती पर मजबूती से जमे हुए। यही जीवन का मंत्र है। लेकिन समंदर सारे मंत्र सारी योजना, सारे तरीके तोड़ देता है। वो प्रेमी है। उसका काम है सब छिन्न भिन्न करना। जब टूटेगा कुछ तभी तो नया उगेगा। समंदर उसी नए उगने की मुनादी है।

तो इस बार समंदर से मुलाक़ात अलग थी। उदासी जीने की अभिलाषा में बदली हुई थी। मैंने लहरों को छुआ और और लहरों ने मुझे सराबोर किया और खिलखिलाकर कहा, 'तुम्हें प्रेमी से किस तरह मिलते हैं ये सलीका भी नहीं आता'। मैं एक पल को लजा गयी।
 


हिचक टूटी और लहरों के आगोश में सिमटने की बेकरारी ने हाथ थामा। कुछ ही देर में समंदर मुझमें था और मैं समंदर में। सुख वहीं आसपास टहल रहा था, मुस्कुरा रहा था। मैंने सुख को देखा और हंस पड़ी। सुख से मेरी जान पहचान एकदम नयी है। मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं जानती लेकिन वो कमबख्त मेरे बारे में सब जानता है। मैंने सुख से कहा देखो सूरज। डूबते सूरज की लालिमा ने आसमान को सिंदूरी रंग में डुबो दिया था। आसमान के कैनवास पर बेहद खूबसूरत पेंटिंग बन रही थी। मैं मंत्रमुग्ध सी उसे देख रही थी और सुख मुझे। तभी एक बड़ी लहर ने हम दोनों को अपने भीतर समेट लिया। पाँव उखड़ गए और कुछ ही देर में मैं बीच धार में थी। आसमान और धरती के मिलन का समय था। समंदर में आसमान सूरज समेत उतरने को व्याकुल। मैंने सुख की ओर हाथ बढ़ाया उसने मुस्कुराकर कहा, जी क्यों नहीं लेती जी भरके। मैं फिर से पानी में गुड्प हो गयी। उसी समय सूरज डूबा, उसी समय दो पंछियों ने एक दूसरे की गर्दन सहलाई, उसी वक़्त धरती पल भर को थमी।

मैंने पाया कि सुख की चौड़ी हथेलियों ने मुझे थाम रखा है। वो एक लम्हा था जिसकी खुशबू पूरी धरती पर बिखरी हुई है। सदियों पहले देखा कोई ख़्वाब आसमान से उतरकर धरती के करीब खुद चलकर आया हो जैसे। धरती को बहुत प्रेम चाहिए। 


2 comments:

Onkar said...

सुंदर रचना

Onkar said...

सुंदर रचना