Tuesday, August 29, 2023

सुख का स्वाद



सुख का स्वाद
उस वक़्त पता नहीं चलता
जब वह घट रहा होता है

वह पता चलता है
घट चुकने के बाद

जीभ पर टपकता है
बूंद-बूंद
धीमे-धीमे
मध्धम-मध्धम 
राग हंसध्वनि की तरंग सा

जैसे मिसरी की डली
घुल रही हो
जैसे नाभि से फूट रही हो कोई ख़ुशबू.
जैसे बालों में अटका हो
बनैली ख़ुशबू से गुंथा
एक फूल।

1 comment:

Onkar said...

सुंदर सृजन