‘रिकी और रानी की प्रेम’ कहानी एक सुंदर कहानी है। न जाने कितने नर्म लम्हे, मीठी सी अधूरी ख्वाहिशें हैं फिल्म में। असल में रिकी और रानी की प्रेम कहानी में उन दोनों की प्रेम कहानी ही केंद्र नहीं है। और यह शायद जरूरी भी था कि दर्शक प्रेम की एक कहानी में सिमट कर न रह जाएँ और देख सकें दुनिया के वो खूबसूरत पहलू जो पास होकर नज़रों से ओझल ही रहे।
फैज के शेर का हाथ थामकर जो प्रेम कहानी शुरू होती है उसका हर शेड खूबसूरत है। शबाना और धर्मेन्द्र की प्रेम कहानी के बहाने फिल्म झूठे, दोगले समाज की चारदीवारी में दम घुटते लोगों को ऑक्सीज़न देती है। विवाह प्रेम की बाध्यता नहीं है। किसी एक लम्हे का प्यार उम्र भर के साथ पर भारी पड़ता है।
शादियों में और कुछ हो न हो अहंकार बहुत होता है, 'ये व्यक्ति मेरा है, इस पर मेरा ही हक़ है' जैसा अहंकार। जया बच्चन उस किरदार को पोट्रे करता है और ठीक से करता है। पितृसत्ता किस तरह स्त्रियॉं को एक टूल कि तरह इस्तेमाल करती है इसकी मिसाल बनकर उभरी हैं जया बच्चन।
पूरी फिल्म मुझे अच्छी लगी। दृश्य, संगीत, आलिया की साड़ियाँ, शबाना की ग्रेस रणवीर की अदायगी।
आलिया के पिता का किरदार, माँ का किरदार, सब किस तरह करीने से गढे गए हैं। वैसे ही रणवीर की माँ का, पिता का बहन का किरदार। हर बिहेवियर एक जर्नी होता है। हम सिर्फ बिहेवियर को देखते हैं जर्नी को नहीं देख पाते। फिल्म उस जर्नी को दिखाती है।
बस जरा सी कसक रह गयी कि जया बच्चन के किरदार की उस जर्नी कि झलक भी जरूर मिलनी चाहिए थी। यह जरूरी था। वह स्त्री होकर स्त्री की दुशमन वाले खांचे में फिट न हो इसलिए यह जरूरी था।
जब फिल्म लिखने वाले और निर्देशक की नज़र साफ हो तब ग्लैमर, गाने बजाने, साड़ी झुमके और रंगीनियों के बीच भी जरूरी बातों को ठीक से रखा जाना मुश्किल नहीं होता।
करन जौहर की ‘कभी अलविदा न कहना’ फिल्म मुझे खूब पसंद आई थी जो एक लाइन में यह बात कहती थी कि किसी को पसंद न करने के लिए उसका बुरा या गलत होना जरूरी नहीं होता ठीक इसके उलट किसी को पसंद करने के लिए उसका सर्वश्रेष्ठ या महान होना जरूरी नहीं होता।
फिलहाल रिकी और रानी जरूर देखनी चाहिए, मनोरंजन भरपूर है और कुछ जरूरी काम की बातें भी हैं जो बिना किसी नसीहत सी लगे साथ हो लेती हैं।
फिल्म में पुराने गानों का इस कदर खूबसूरत प्रयोग है कि कोई दिखाये तो फिल्म मैं दोबारा देख सकती हूँ...शबाना के लिए , ईशिता मोइत्रा, शशांक खेतान और सुमित राय की कहानी के लिए।
यह प्रेम कहानी सिर्फ दो लोगों के बीच के प्रेम की कहानी नहीं है जीवन के तमाम रंगों से प्रेम करने की कहानी है जिन्हें अपनी नासमझी से हमने बदरंग कर रखा है और जिसकी अक्सर हमें ख़बर भी नहीं है।
फैज के शेर का हाथ थामकर जो प्रेम कहानी शुरू होती है उसका हर शेड खूबसूरत है। शबाना और धर्मेन्द्र की प्रेम कहानी के बहाने फिल्म झूठे, दोगले समाज की चारदीवारी में दम घुटते लोगों को ऑक्सीज़न देती है। विवाह प्रेम की बाध्यता नहीं है। किसी एक लम्हे का प्यार उम्र भर के साथ पर भारी पड़ता है।
शादियों में और कुछ हो न हो अहंकार बहुत होता है, 'ये व्यक्ति मेरा है, इस पर मेरा ही हक़ है' जैसा अहंकार। जया बच्चन उस किरदार को पोट्रे करता है और ठीक से करता है। पितृसत्ता किस तरह स्त्रियॉं को एक टूल कि तरह इस्तेमाल करती है इसकी मिसाल बनकर उभरी हैं जया बच्चन।
पूरी फिल्म मुझे अच्छी लगी। दृश्य, संगीत, आलिया की साड़ियाँ, शबाना की ग्रेस रणवीर की अदायगी।
आलिया के पिता का किरदार, माँ का किरदार, सब किस तरह करीने से गढे गए हैं। वैसे ही रणवीर की माँ का, पिता का बहन का किरदार। हर बिहेवियर एक जर्नी होता है। हम सिर्फ बिहेवियर को देखते हैं जर्नी को नहीं देख पाते। फिल्म उस जर्नी को दिखाती है।
बस जरा सी कसक रह गयी कि जया बच्चन के किरदार की उस जर्नी कि झलक भी जरूर मिलनी चाहिए थी। यह जरूरी था। वह स्त्री होकर स्त्री की दुशमन वाले खांचे में फिट न हो इसलिए यह जरूरी था।
जब फिल्म लिखने वाले और निर्देशक की नज़र साफ हो तब ग्लैमर, गाने बजाने, साड़ी झुमके और रंगीनियों के बीच भी जरूरी बातों को ठीक से रखा जाना मुश्किल नहीं होता।
करन जौहर की ‘कभी अलविदा न कहना’ फिल्म मुझे खूब पसंद आई थी जो एक लाइन में यह बात कहती थी कि किसी को पसंद न करने के लिए उसका बुरा या गलत होना जरूरी नहीं होता ठीक इसके उलट किसी को पसंद करने के लिए उसका सर्वश्रेष्ठ या महान होना जरूरी नहीं होता।
फिलहाल रिकी और रानी जरूर देखनी चाहिए, मनोरंजन भरपूर है और कुछ जरूरी काम की बातें भी हैं जो बिना किसी नसीहत सी लगे साथ हो लेती हैं।
फिल्म में पुराने गानों का इस कदर खूबसूरत प्रयोग है कि कोई दिखाये तो फिल्म मैं दोबारा देख सकती हूँ...शबाना के लिए , ईशिता मोइत्रा, शशांक खेतान और सुमित राय की कहानी के लिए।
यह प्रेम कहानी सिर्फ दो लोगों के बीच के प्रेम की कहानी नहीं है जीवन के तमाम रंगों से प्रेम करने की कहानी है जिन्हें अपनी नासमझी से हमने बदरंग कर रखा है और जिसकी अक्सर हमें ख़बर भी नहीं है।
2 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (१०-०८-२०२३) को 'कितना कुछ कुलबुलाता है'(चर्चा अंक-४६७६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह! बेहतरीन
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