Saturday, May 27, 2023

एक था नज़ीब


तुम्हें याद है वो नौजवान
जिसकी आँखों से ख़्वाब छलकते रहते थे
जिसकी बाँहों में सामर्थ्य थी 
दुनिया के अंधेरों को मिटा देने की 
वो नौजवान जो सिर्फ अपने लिए नहीं 
पूरी दुनिया के लिए सपने देखता था 
वो जो हर वक़्त मोहब्बत में डूबा रहता था 
इस दुनिया को मोहब्बत के फूलों से 
सजाना चाहता था, संवारना चाहता था 
जो चाहता था कि जो सच दिखे 
वो सच ही हो भी 

क्या तुमने देखा है उस नौजवान को 
जो अधूरी नींदों के बीच से जागकर 
लोगों के लिए सुकून की नींद बुनना चाहता था 
जो कैंटीन में छोड़ देता था अधूरा समोसा 
और निकल पड़ता था उस ख़्वाब के पीछे  
कि कोई बच्चा मुठ्ठी भर अनाज की कमी से 
दम न तोड़े 
कोई किसान मुंह न फेरे ज़िंदगी से 
वो जो दुनिया के हर मसायल को 
अपनी जिम्मेदारी समझता था 

वो नौजवान बहुत दिनों से गुम है
उसका नाम नज़ीब था  

वो जब से गुम हो गया है 
मेरे सपनों में आने लगा है
हर रात वो कुछ सवाल और कुछ सपने
मेरी नींदों में रख जाता है 

जागती हूँ तो नज़ीब की माँ की याद आती है 
रोहित वेमुला की माँ की याद आती है 
उन तमाम माँओं की याद आती है 
जिनके बच्चों ने इस दुनिया को 
जीने लायक बनाने के सपने देखने की सजा पायी
गर्दन उदासी से झुक जाती है
और आपकी?

1 comment:

Onkar said...

बहुत ही बढ़िया