कल रात 12 बजे के करीब ‘परिज़ाद’ का आखिरी एपिसोड देखा. मैंने खुद को ख़ुशी के आंसुओं में तर इस कदर कब कुछ देखते हुए पाया था याद किया तो जल्दी से कुछ याद नहीं आया.
इस सीरीज का अंतिम सिरा जब रात के 12 बजे हाथ से छूटता है तो लगता है कितना हल्का महसूस कर रही हूँ. दो दिन पहले बीते वैलेंटाइन डे को मुंह चिढ़ाती एक अलग सी कहानी. प्रेम क्या है आखिर, कैसा होता है, कैसे निभाया जाता है, बिना सम्मान के भला कौन सा प्रेम...जैसे तमाम सवाल ढुलक जाते हैं. परिज़ाद से प्यार हो जाता है. दुनिया ने जिसे खोटा सिक्का कहकर हमेशा नकारा, जो गुरबत की गलियों में पला बढ़ा. ख़्वाब देखने से पहले पलकें झुका लेने वाला, बेहद अंडर कांफिडेंट परिज़ाद भीतर से इतना खूबसूरत, भोला और भला इंसान है कौन न प्यार कर बैठे उसे. सारी दुनिया उसके गहरे रंग, सादा से रूप के आगे उसकी काबिलियत उसके हुनर को दुत्कारती रही लेकिन उसने किन्ही भी हालात में भीतर की नदी को सूखने नहीं दिया, अपने भीतर की अच्छाई को खुद से दूर जाने नहीं दिया. ऐसा करने के लिए उसने कुछ प्रयास नहीं किया क्योंकि वो तो ऐसा ही था उसे वैसा ही होना आता था. मुझे कुछ पसंद आ जाए तो मैं बिंज वाच करती हूँ. परिज़ाद इन दिनों सोते-जागते साथ रहा. उसकी आँखे, उसकी चाल उसकी आवाज़, उसकी पोयट्री सब साथ चलते हैं. उसके संघर्ष नहीं रुलाते, प्यार रुलाता है. सच में किसी ख़्वाब सा लगता है परिज़ाद का होना. ऐसे ख़्वाब बचाए जाने चाहिए, हमें बहुत सारे परिज़ाद चाहिए. परिज़ाद को पसंद करना ज़िन्दगी को, पोयट्री को, इंसानियत को प्यार करना है.
परिज़ाद देखने का सुझाव करीब तीन दिन पहले डा अनुराग आर्या ने दिया था. डा अनुराग के सुझाव से पहले जब भी कुछ देखा है मन खुश-खुश सा हुआ है. शुक्रिया डा अनुराग. आगे भी ऐसे ही सजेस्ट करते रहियेगा.
परिज़ाद एक पाकिस्तानी सीरीज है जो यूट्यूब पर उपलब्ध है.
3 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4344 में दिया जाएगा| ब्लॉग पर आपकी आमद का इंतजार रहेगा|
धन्यवाद
दिलबाग
शिद्दत से किया गया कोई भी काम अंतहीन ख़ुशी देता है
भावात्मक गहन समीक्षा सीरीज के प्रति उत्साह बढ़ा रही है।
शिवानी के चौदह फेरे के नायक के मानिंद।
अप्रतिम।
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