Thursday, September 2, 2021

मौन में बात


सुनना
कोलाहल के समन्दर के बीच
अपनी धड़कनों की
कलियों के चटखने की
पत्तियों के गिरने की
मोगरे की खुशबू की
दिल के टूटने की
उदास आँखों में उगती उम्मीद की
आवाज़ को सुनना
सुनने का अभ्यास है,


एकांत
अकेले रहना नहीं होता
एकांत में होना
भीड़ में, कोलाहल में भी
बुना जा सकता है
अपने लिए एकांत का सुंदर बाना
जैसे ढेर सारे शब्दों और वाक्यों के बीच
बचाया जा सकता है
मौन का नन्हा सा बीज
जिसे सींचा जा सकता है
आत्मा के पानी से
जिसकी छांव में हम
सुस्ता सकें एक रोज
दुनियादारी की भागमभाग से थककर.


देखना
दृश्य जो झिलमिलाते हैं
वो दिखते हैं लेकिन दिखते नहीं
दृश्य जो कचोटते हैं
वो उस कचोट की यात्रा नहीं दिखाते
दृश्यों में डूबते-उतराते अक्सर
छूट जाता है हमसे देखना
क्योंकि देखना दृश्य भर नहीं होता.


बोलना
जब चुप थी
तब कितना शोर था भीतर
कितनी बातें

स्मृतियां कितना शोर करती हैं

चुप में रहकर जाना
कि बात के भीतर थी एक और बात थी
स्मृति के भीतर थी एक और स्मृति

सामने दिखती दीवार पर
शब्दों और वाक्यों का ढेर था
जबकि बागीचे में खिला था एक फूल
और उस पर मंडराने के बाद
पीली धूप पहनने वाली तितली ने कहा,
'जरा चुप भी हो जाओ
कि बारिश आने को है.'

बोलना
जब हम शब्दों में बोलते हैं
तब बचा रहता है थोड़ा सा मौन
थोड़ी सी चुप बची रहती है

जब हम बोलना बंद करते हैं
बहुत शोर करती है चुप्पी

मौन धीमे से मुस्कुराता है
हाँ, मौन और चुप दो अलग बाते हैं.

बंद आँखों से देखना
जब आँखें बंद होती हैं
तो खुलता है एक बड़ा सा संसार

बंद आँखों की दुनिया में
जंगल, नदियाँ पहाड़ सब होते हैं

बंद आँखों की दुनिया खुलती है
स्वप्न और स्मृति के संसार में
वहां ढेर सारे रंग खुलते हैं

बंद आँखों की खिड़की पर
बारिश की आवाज लिए बैठा होता है पंछी

प्रार्थना के लिए आँखें बंद करने पर
ईश्वर के सिवा सब दिखता है
और आँखें खोलने पर दिखती है
ईश्वर की मूर्ति

बंद आँखों से देखना एक अभ्यास है
यह आँखें बंद करने से नहीं आता.


सवाल
जवाब सवालों के नहीं होते
सवालों में होते हैं
सवाल होने पर परेशान होने से बेहतर है
सवालों से घिरे रहना
जवाब की खोज में भटकने से बेहतर है
बेहतर सवालों की खोज में निकल पड़ना.

शाख
खाली शाख
स्मृतियों से भरी होती है
ढेर सारे दृश्य टंगे होते हैं
खाली शाखों पर
हरियाली की खुशबू से तर-ब-तर
पंछियो के कलरव से झूमती
जुगनुओं से झिलमिलाती
खाली शाखों को देखने के लिए
ख़ास नजर चाहिए
खाली शाख सा दिखे कोई व्यक्ति
तो खाली मत समझना उसे
उसके भीतर छुपी हरियाली
से तनिक हरा चुन लेना.

2 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 03 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Onkar said...

सुन्दर सृजन