भारतीय विकास नारीवादी कार्यकर्ता, कवयित्री, लेखिका और सामाजिक विज्ञानी कमला भसीन का 25 सितम्बर की सुबह निधन हो गया। वे 75 वर्ष की थीं। वे कैंसर से पीड़ित थीं । कमला भसीन ने महिलाओं के हक़ की लड़ाई के लिए लगभग 1970 से ही काम शुरू कर दिया था। उन्होंने लिंग भेदभाव, शिक्षा, मानव विकास, महिला सम्मान आदि चीजों पर खुलकर समाज के सामने लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने ‘जागो री मूवमेंट’ के माध्यम से महिलाओं को पितृसत्तात्मक समाज से बाहर निकलने के लिए कई अथक प्रयास जारी रखें थे। भसीन ने नारीवाद और पितृसत्ता को समझने पर कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से कई का 30 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया।
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सुबह आँख खुली तो एक उदास ख़बर सामने खड़ी थी। कमला भसीन नहीं रहीं। फेसुबक पर उदासी बिखरी हुई थी। मैं इधर-उधर के कामों को समेटते हुए लगातार कमला दी के बारे में सोच रही थी। इस ख़बर पर यक़ीन करने का मन ही नहीं कर रहा था। हालाँकि यह अचानक हुई दुर्घटना नहीं है। उनके स्वास्थ्य के बारे में लगातार जानकारी मिल रही थी। वो लम्बे समय से कैंसर से लड़ रही थीं। लगातार उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा था लेकिन उनकी जिजीविषा वैसी ही थी। खुश रहने की उनकी फितरत, दूसरों को खुश रखने की चाह और किसी भी हाल में हौसला न टूटने की प्रतिबद्धता।कमला दी का जाना भारत में स्त्री आन्दोलन की पैरोकार का जाना है। उस आवाज़ का जाना है जो किसी भी हाल में समझौतापरस्ती का विरोध करती थीं और स्त्री के हक़ के लिए लड़ना जानती थी। कमला दी की जानिब से नारीवाद को देखना एक खूबसूरत दुनिया का सपना देखना था। उनका नारीवाद स्त्रियों के हक़ में तो था लेकिन पुरुषों के विरोध में नहीं था। असल में नारीवाद यही तो है स्त्री समानता की बात न कि पुरुषों के विरोध की बात।
वो कहती थीं कि नारीवाद का सिर्फ एक अर्थ है समानता। वो सदियों से पितृसत्ता की गाड़ी में बैल की तरह जुती स्त्री के मन की दशा भी समझती थीं और यह भी कि वो कौन से कारण हैं जो एक स्त्री को दूसरी स्त्री के खिलाफ खड़ा करते हैं। वो किसी व्यक्ति के नहीं विचार के खिलाफ थीं। सत्ता के विचार के, पितृसत्ता के विचार के। उन्होंने कहा कि, ‘मैं ऐसी बहुत सी स्त्रियों को जानती हूँ जो पितृसत्ता की पैरोकार हैं, जो स्त्री होकर भी स्त्री विरोधी हैं। लेकिन मैं ऐसे पुरुषों को भी जानती हूँ जो महिला अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। फेमिनिज्म बयोलौजिकल मामला नहीं है यह आडियोलौजिकल मामला है।’
वो कहती थीं, ‘मैं चाहती हूँ नारीवादी महिलाएं ही न हों, नारीवादी पुरुष भी हों।’ ‘नारीवाद से हमारा मतलब है समानता सिर्फ समानता’। नारीवाद को पुरुषों के विरोध में उठे किसी स्वर के तौर पर नहीं देखना है बल्कि शोषण की उस बुनियाद को हिलाना है जहाँ किसी एक को मनुष्य के रूप में मिलने वाले अधिकारों से ही वंचित किया जा रहा हो। और जाहिर है ‘वह एक’ स्त्री ही तो है। लेकिन जब भी नारीवाद की बात होती है कुछ पुरुष कुछ उदाहरणों के साथ आ खड़े होते हैं कि महिलाएं भी तो जीना दूभर करती हैं, देखिये उसके साथ ऐसा हुआ, इसके साथ वैसा हुआ। कमला दी के उनकी पास हर बात का जवाब होता था। उनकी बात समझने के लिए दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की जरूरत नहीं थी।
विचारों से मजबूत कमला दी भावनात्मक रूप से खूब नरम थीं। वे जल्दी से दोस्ती कर लेतीं, दिल लगा बैठतीं। दोस्ती में भी वो बराबरी के भाव को अहमियत दिया करती थीं। इसलिए उनके दोस्तों में ढेर सारे युवा और बच्चे भी शामिल हैं जिनमें से एक मैं भी हूँ।
जल्दबाजी में हुई एक छोटी सी मुलाकात और फोन पर हुई कुछ बातचीत भर से मेरा उनसे आत्मीयता का जो तार जुड़ा वो ज़िन्दगी भर जुड़ा रहेगा। उनसे बात करते हुए इतनी हिम्मत मिलती थी और इतनी उम्मीद जगती थी कि ‘अब सब ठीक हो जायेगा’ के भाव से मैं भर उठती थी। कई बार फेसबुक से पता चलता कि जब वो मेरी समस्याओं को सुलझा रही थीं तब वो मेरी समस्या से कहीं बड़ी समस्या से जूझ रही थीं।
व्यक्ति असल में विचार ही तो होता है। और इस लिहाज से कमला दी कहाँ गयीं, उनके विचार हैं हमारे पास। उनके विचार सदियों तक हमें रास्ता दिखायेंगे। ये जानते हुए भी इस ख़बर के बाद से तारी उदासी जा ही नहीं रही। कमला दी, आपसे एक बार तसल्ली से मिलना, देर तक गले लगना रह गया। मिस यू कमला दी।
प्रतिभा कटियार
लखनऊ में पली-बढ़ी प्रतिभा कटियार ने राजनीति शास्त्र में एमए किया, एलएलबी के बाद पत्रकारिता में डिप्लोमा किया. पत्रकारिता करना तय किया, 'स्वतंत्र भारत', ‘पायनियर’ 'हिंदुस्तान' 'जनसत्ता एक्सप्रेस' और 'दैनिक जागरण' जैसे हिंदी के महत्वपूर्ण अख़बारों में काम किया. इसके बाद अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के साथ जुड़कर शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चुना. इन दिनों देहरादून में कार्यरत हैं.
(https://www.spsmedia.in/celebrity/passing-of-kamala-bhasin-the-advocate-of-womens-movement-in-india/)
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