Saturday, July 24, 2021

चेहरा


काम पर जाती हुई औरतें
घर पर रहकर काम करने वाली औरतों से अलग नहीं होतीं

दोनों ही संभालती हैं घर और बाहर की दुनिया
दोनों ही जूझती हैं भीतर बाहर की लड़ाइयों से
दोनों के ही जीवन में है काम का भंडार
और उस पर से मिलने वाले ताने अपार

दोनों को निपटाने होते हैं समय रहते सारे काम
बुलट ट्रेन की स्पीड फिट होती है उनके हाथों में
दोनों के पास नहीं होता अपने लिए वक़्त

काम पर जाती औरतें ऑफिस में निपटाती हैं फाइलें
घर पर रहते हुए काम करती औरते कसती हैं गृहस्थी के नट बोल्ट
काम पर जाती औरतें कुछ रोज ब्रेक लेकर घर पर रहना चाहती हैं
घर पर काम करती औरतें कुछ दिन बाहर जाकर
काम करने का सपना आँखों में पालती हैं

दोनों एक-दूसरे को हसरत से देखती हैं
दोनों को ही नहीं देखता कोई
दोनों से कोई खुश नहीं रहता

काम पर जाती औरतें ही घर पर काम करती औरतें हैं
घर पर रहकर काम करती औरतें ही काम पर जाती औरतें हैं
दोनों के चेहरे आपस में गड्डमगड्ड हैं

ये एक-दूसरे के साथ बैठकर चाय पीने के इंतज़ार में 
रसोई से लेकर ट्राम तक ये भागती जा रही हैं

ऑफिस में फ़ाइल निपटानी हो, घर की रसोई समेटनी हो
या करना हो मेम साब के घर का झाड़ू, बर्तन, पोछा या मजदूरी 
ये सारी औरतें एक ही हैं

फेसबुक विमर्श से दूर अपनी ही डबडबाई आँखों में
उतराते अपने कच्चे सपनों को देखती हैं

एक रोज निकालकर तनिक सी फुरसत
छोड़कर कुछ जरूरी काम
जब ये एक-दूसरे के गले लगकर हिलगकर रो लेंगी
तब सूख जायेंगे इन्हें बांटने के इरादे से बोये जाने वाले तमाम बीज

जब तक ये निपटा रही हैं अपने काम
तब तक ही चल पायेगा इन्हें बांटने का कारोबार.

7 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२५-०७-२०२१) को
'सुनहरी धूप का टुकड़ा.'(चर्चा अंक-४१३६)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२५-०७-२०२१) को
'सुनहरी धूप का टुकड़ा.'(चर्चा अंक-४१३६)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

PRAKRITI DARSHAN said...

गहन रचना, बेहद सुंदर ढंग से उभरे भाव।

Amrita Tanmay said...

अर्थपूर्ण दृष्टि ।

Anonymous said...

बहुत सुंदर👌👌👌

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

सोशल मीडिया पर मचे बवाल को कितना साफ और सार्थक ,सरल दृष्टिकोण से यहाँ परोसा है आपने ।काश इस पर अपनी अपनी रोटियाँ सेंकने वालियां / वाले भी इस सरल समीकरण को सरल ही रहने देते ।

Bharti Das said...

बहुत सुंदर रचना