Sunday, July 25, 2021

औरतें सपने देख रही हैं


खेतों की कटाई में, धान की रुपाई में
रिश्तों की तुरपाई में लगी औरतें सपने देख रही हैं

बच्चों को सुलाते हुए, उनका होमवर्क कराते हुए 
गोल-गोल रोटी फुलाते हुए 
औरतें सपने देख रही हैं 

ऑफिस की भागमभाग में, प्रोजेक्ट बनाते हुए 
बच्चों को पढ़ाते हुए, मीटिंगें निपटाते हुए 
औरतें सपने देख रही हैं 

घर के काम निपटाते हुए, पड़ोसन से बतियाते हुए 
टिफिन पैक करते हुए 
आटा लगे हाथ से आंचल को कमर में कोंचते हुए 
औरतें सपने देख रही हैं 

बेमेल ब्याह को निभाते हुए 
शादी, मुंडन जनेऊ में शामिल होते 
हैपी फैमिली की सेल्फी खिंचवाते हुए 
आँखें मूंदकर सम्भोग के दर्द को सहते हुए
सुखी होने का नाटक करते हुए 
औरतें गीली आँखों के भीतर सपने देख रही हैं 

कि एक दिन वो अपने हिस्से के सपनों को जी लेंगी 
एक दिन वो अपने लिए चाय बनाएंगी 
अपने साथ बतियायेंगी 
खुद के साथ निकल जायेंगी बहुत दूर 
जहाँ उनके आंसू और मुस्कान दोनों पर
नहीं होगी कोई जवाबदेही 
बहुत आहिस्ता से जाना उनके करीब 
चुपचाप बैठ जाना वहीं, बिना कुछ कहे 
या ले लेना उनके हाथ का काम ताकि 
औरतें सपने देखती रह सकें 
और उनके सपनों की खुशबू से महक उठे यह संसार.

16 comments:

Kamini Sinha said...

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-7-21) को "औरतें सपने देख रही हैं"(चर्चा अंक- 4137) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा

Kamini Sinha said...

कृपया २६ की जगह २७ पढ़े
कल थोड़ी व्यस्तता है इसलिए आमंत्रण एक दिन पहले ही भेज रही हूँ।

Onkar said...

बहुत सुंदर

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 26 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Manisha Goswami said...

सुखी होने का नाटक करते हुए
औरतें गीली आँखों के भीतर सपने देख रही हैं
बहुत ही बेहतरीन और हृदयस्पर्शी रचना!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत दिन बाद आपको पुनः पढ़ना हो पाया। निश्चय ही वह सब कुछ अपने लिये भी कर सके, ईश्वर से प्रार्थना है कि इतनी इच्छाशक्ति सबको मिले। सुन्दर पंक्तियाँ।

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल said...

महिलाएं क्या कुछ नहीं कर सकती - - दरअसल इस सृष्टि की रचनाकार नारी ही है - - प्रभावशाली रचना - - साधुवाद सह।

Vocal Baba said...

बहुत बढ़िया और सार्थक सृजन। सम्पूर्ण रचना को बार बार पढ़ने को मन करता है। कितनी सकारात्मकता और अरमान इस रचना में हैं। प्रतिभा कटियार जी..इस खूबसूरत सृजन के लिए आपको कोटि कोटि धन्यावाद। ढेरों शुभकामनायें।

कविता रावत said...

बहुत आहिस्ता से जाना उनके करीब
चुपचाप बैठ जाना वहीं, बिना कुछ कहे
या ले लेना उनके हाथ का काम ताकि
औरतें सपने देखती रह सकें
और उनके सपनों की खुशबू से महक उठे यह संसार

.. सारे नहीं तो कुछ सपने ही सही वह भी साकार होते देख लें तो सच में उनके सपनों की खुशबू से निश्चित ही यह संसार महक उठेगा।

बहुत सुन्दर

Sudha Devrani said...

कि एक दिन वो अपने हिस्से के सपनों को जी लेंगी
एक दिन वो अपने लिए चाय बनाएंगी
अपने साथ बतियायेंगी
खुद के साथ निकल जायेंगी बहुत दूर
जहाँ उनके आंसू और मुस्कान दोनों पर
नहीं होगी कोई जवाबदेही
औरते सपने देख रही हैं ना जाने कब तक बस सपने ही देखती रहेंगी ये औरते...
बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं हृदयस्पर्शी सृजन।

Marmagya - know the inner self said...

औरतें सपने देख रही हैं। सुंदर अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ

Amrita Tanmay said...

सशक्त एवं प्रभावी सृजन ।

Bharti Das said...

बहुत सुंदर, सपने देखने से ही सपना साकार होने की गुंजाइश हो सकती है

Nitish Tiwary said...

बहुत खूब।

गोपेश मोहन जैसवाल said...

बहुत मार्मिक और हम नाशुक्रे मर्दों के लिए शर्म से अपना सर झुकाने को मजबूर करने वाली एक हक़ीक़त !
साहिर की पंक्तियाँ -
औरत ने जनम दिया मर्दों को,
मर्दों ने उसे बाज़ार दिया.
जब जी चाहा मसला-कुचला,
जब जी चाहा दुत्कार दिया.
याद आ गईं.


याद आ गईं

Ritu asooja rishikesh said...

बेहतरीन प्रस्तुति