Thursday, July 15, 2021

अलग सा एहसास है मारीना को पढ़ना



इस नायाब किताब को मैने कई दिन लगाकर पढ़ा, लगभग हर पन्ना भावनाओं का सैलाब लाता है। मारीना का जन्म सन् 1892 में एक महान कला मर्मज्ञ और इतिहासकार, ईवान व्लादिमिरोविच के घर में हुआ था। लेकिन, नियती ही थी कि, चांदी का चम्मच मुँह में लेकर पैदा हुई मारीना के कुल जमा 49 साल के जीवन का अधिकांश हिस्सा अभावों से जूझते हुए बीता, अभाव प्रेम और सहयोग का! पैसों का! और सबसे अधिक समय का अभाव, जिसकी गूंज किताब में कदम-दर-कदम मिलती है!

किताब में मारीना की कुछ बेहतरीन अनूदित कविताएं पढ़ने को मिली, ‘एक सुबह’, ‘ऑन द रेड हाॅर्स’, ‘फ़ासले’, ‘कवि’, ‘प्यारी मेज़’ और भी कई, जिनका अनुवाद भी इतना मीठा है कि, मुझ जैसे सामान्य पाठक की ज़बान पर भी मारीना की कविताओं का स्वाद चढ़ गया। एक कविता में मारीना कहती हैं- “.... मेरी कविताएं संभाल कर रखी गई सुरा की तरह हैं मैं जानती हूं कि इनका भी वक़्त आएगा...”! कविता का ये अंश समय से कहीं आगे की बात कहता लगता है, जो सच हुआ। किताब में जब मारीना के जीवन को प्रभावित करने वाले अहम किरदारों के तौर पर पुश्किन, रिल्के, पास्तरनाक, जैसे महान कवियों के ज़िक्र आये, तो लगा, इन्हें भी तो रूक कर, थम कर पढ़ा जाना ज़रूरी है, फिर, उन्हें जानने की ख़्वाहिश में इण्टरनेट भी खूब खंगाला।

दरअसल मेरी नज़र में यह किताब मारीना की जीवनी नहीं, बल्कि कई-कई मुलाकातें हैं, मुलाकातें सिर्फ मारीना के साथ ही नहीं बल्कि दुनिया के उस दौर के दूसरे बेहतरीन कवियों के साथ भी। मारीना के जीवन में घटे अधिकांश घटनाक्रम सन्दर्भों के साथ लिखे गये हैं और जहां घटनाओं के सन्दर्भ नहीं हैं, वहां सम्भावनाओं के सन्दर्भ अंकित हैं, जिससे इस किताब में लिखे हर शब्द के प्रति विश्वास बढ़ जाता है। हम महसूस कर पाते हैं कि, बेरहम सत्ता और निरंकुश राजनीति कैसे कला और साहित्य जगत पर अपना शिकंजा कसती है, ये हर कालखण्ड की त्रासदी रही है। मारीना के इर्द-गिर्द लिखी घटनाओं से, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच के राजनीतिक उठापटक के उस दौर में साहित्य जगत पर पड़ने वाले प्रभावों की झलक भी मिलती है।

पाॅल गोगां हों, वाॅन गाॅग हों या मारीना! ये मुफलिसी न होती तो ये महान रचनाकार दुनिया को और भी न जाने क्या क्या दे जाते, मगर समय रहते हमें किसी की भी क़द्र ही कहां होती है? एक जगह किताब में मारीना कहती हैं, चिकित्सक इंसान के लिए ज़रूरी होते हैं, लेकिन कवि समाज़ के लिए...। वाकई! लेकिन, ये सर्जक जो समाज की ऑक्सीजन होते हैं, हम इन्हें वो सम्मान जीतेजी देते ही कब हैं? मारीना जिस विरासत को पोषित करती थी, उसे आज भी पूरी दुनिया आह भरकर देखती है। मारीना के पिता, मां, पति, पुत्री, बहिन और मित्र, सभी एक से बढ़कर एक रहे, जो खुद इतिहास और साहित्य जगत की सुनहरी इबारतें लिख गये हैं, ज़रूर उन सबके भी अपने अपने कष्ट थे, लेकिन मारीना ने जिन दुश्वारियों को झेला वो असहनीय थीं। आर्थिक तंगी की पराकाष्ठा, लेखन न कर पाने का मलाल, एक-एक कर अपने परिजन, अपने प्रियजनों का विदा हो जाना, अपने पति और बेटी का जेल में होना........... ऊफ्फ! इतनी पीड़ा से निबटना आसान भी तो नहीं था।

आखि़र में हम जो पाते हैं- अपनी ख़्वाहिशों को तीन चिट्ठियों में समेट कर इस दुनिया से विदा होती मारीना!

अपनी मां की मौत के बाद मरीना का बेटा मूर, जिसका हाथ मारीना कभी नहीं छोड़ती थी, अपने दोस्त को लिखता है कि, वह उस बारे में सिर्फ एक ही बात कह सकता है कि 'मम्मा ने जो किया, अच्छा किया, उनके पास खुद को ख़त्म कर देने की पर्याप्त वजहें थीं।' जब एक बेटे को अपनी मां की आत्महत्या इस रूप में स्वीकार करनी पड़े, तो इससे ज़्यादा दयनीय क्या हो सकता है?

मारीना सिखाती है कि, विपरीत परिस्थितियों में भी जीवनपर्यन्त ईमानदार बना रहा जा सकता है, जो अपने लेखन के प्रति, अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति, अपने पति, अपने प्रियजनों के साथ ही अपने आलोचकों के प्रति भी ताउम्र ईमानदार रही!

ये किताब मारीना के बचपन, युवावस्था, निर्वासन, माॅस्को वापसी जैसे जीवन के विशेष पड़ावों के आधार पर, अलग-अलग खण्डों में बंटी हैं। किताब में दिये कुछ विशेष घटनाक्रमों के आखिर में लेखिका ने बुकमार्क के तौर पर मारीना के साथ अपने संवादों की जो कल्पना की है, वो अप्रतिम है, यहां भावों की गगरिया छलछलाने लगती है। शायद बुकमार्क के इस तजवीज़ का भी असर है, कि मुझे ये किताब जीवनी से बढ़कर मुलाकात लगती है। वो दौर ख़त-ओ-किताब़त का दौर था, मारीना में उद्धृत ख़तों को पढ़कर नीली अन्तर्देशियां, पीले लिफाफे, पोस्टकार्ड भी खूब याद आये।

समझा जा सकता है कि, एक दूसरे देश की कवयित्री (जबकि मारीना खुद को रूस की कवि कहलाना पसंद नहीं करती थीं, वो खुद को सिर्फ कवि मानती थीं) की जीवनी को कागज़ में उतारने के लिए लेखिका ने कितनी मेहनत, कितना संयम, कितना समय और कितना धन विनियोजित किया होगा। किताब की शुरूआत में लेखिका के अपने उद्गार पढ़कर ही त्याग के इस ताप की आंच महसूस की जा सकती है।
एक बार इसी किताब पर परिचर्चा के दौरान एक समारोह में मैने प्रतिभा जी को सुना था। वो जब मारीना की छोटी बेटी के भूख से मर जाने की घटना के बारे में अपनी भावनाएं बांट रही थीं, मेरी आंखें डबडबाने लगी थीं। सच है, जब एक लेखक कोई जीवनी लिखता है तो उसकी ज़िम्मेदारी बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है। प्रतिभा जी ने मारीना लिखकर हम पाठकों पर एहसान किया है, जिसे हम सिर्फ उन्हें बधाई देकर या धन्यवाद कहकर तो नहीं चुका सकते, लेकिन एक पाठक के तौर पर मैं उन्हे हमेशा इतना ज़रूर कहती हूँ कि, आपके दौर का पाठक होकर गर्व सा होता है।

प्रतिभा जी को एक बार फिर से हार्दिक बधाई और धन्यवाद

मारीना (जीवनी)रूस की महान कवयित्री मारीना त्स्वेतायेवा का युग और जीवन
लेखिका- प्रतिभा कटियार
मूल्य- 300 रूपये 
प्रकाशन: संवाद प्रकाशन, मेरठ

6 comments:

Roli Abhilasha said...

बहुत ही सुंदरता से पिरोया है शब्द-शब्द!

Roli Abhilasha said...

सुंदर!

Onkar said...

बहुत सुंदर

Archana Gangwar said...

साहित्यकारों के एकजुट होने का वक्त आ गया है खुद के बारे में खुद ही सोचना होता है इतिहास को पढ़कर भविष्य का मार्ग ज़रूर सही करना चाहिए।बहुत सुंदर लिखा

20HITECH said...

BAHUT SUNDER LEKH

Neha Mishra said...

जी, दीदी 🙌🙌🙌