Sunday, May 16, 2021

मोगरे की खुशबू और उदास दिन रात


दिन हमेशा की तरह उदासी की सूरत लिए उगा और पीछे-पीछे घूमने लगा. उसे चकमा देने के लिए मैं बार बार जगह बदलती, काम बदलती लेकिन उसे पता चल जाता और वो अपनी बिसूरती सी सूरत लिए मेरे पीछे आ खड़ा होता. थककर मैं कमरे में लेट गयी और पंखे को देखने लगी. पंखा चल नहीं रहा था लेकिन दिमाग चल रहा था. कभी-कभी आपको पता नहीं होता कि आपके साथ क्या घट रहा है लेकिन वो जो घट रहा होता है उसके असर से बचना मुश्किल होता है. खासकर तब जब ऐसे उदास दिन पीछे पड़े हों.

दिन भर दिन के साथ आँख-मिचोली का खेल चलता रहा. फेसबुक वाट्स्प, न्यूज़ सबसे मुंह मोड़कर तमाम उदास खबरों से खुद को छुपाये फिरती हूँ लेकिन शाम होते-होते सब कोशिशें बेकार हो जाती हैं और दिन अपनी कारस्तानी दिखाकर कुछ उदास कुछ गुस्सा दिलाने वाली खबरों के हवाले करके अपनी उदासी शाम को टिकाकर मुंह चिढ़ाते हुए चला जाता है. 

ऐसे ही बीत रहा था आज का दिन भी. इतवार था तो कुछ ख़ास होना चाहिए और उस ख़ास में आँखों को छलक लेने को जरा स्पेस मिली. ढेर सारा रो लेने के बाद ढेर सारी प्यास लगती है यह मैंने पहली बार महसूस किया और लगातर तीन गिलास पानी पिया. सुबह से जो बेचैनी का गोला पेट में घूम रहा था वो अब पेट के पानी में गुडगुड करने लगा. मुझे इस गुडगुड वाली बात पर हंसी आ गयी. रोने के ठीक बाद वाली हंसी. फिर मुझे लगा इस समय ढेर सारे लोग हैं जो रो भी नहीं पा रहे अगर मैं उनके कुछ काम आ सकूँ और उनके हिस्से का रो लूं? लेकिन अगले ही पल यह बात काफी फ़ालतू लगी. अपनी ही पुरानी बात याद आ गयी कि दुःख आंसुओं से कहीं बड़ा होता है. 

शाम की वॉक करते-करते मैं उदासी दोनों से थकने लगे. रोज शाम की वॉक के वक़्त कुछ मोगरे अपने बालों में सजा लेती हूँ. वो रात भर महकते हैं और नींद न आने की सूरत में उनकी खुशबू मेरा साथ देती है. आज ढेर सारे मोगरे खिले मिले. अचानक मैंने महसूस किया कि एकदम से मेरा मन खिल गया है. ढेर सारी उदासी के बाद यह जरा सा खिलना देर से रियाज करते-करते किसी सुर के सही-सही लग जाने जैसा था. मैंने अपनी हथेलियों को मोगरे के फूलों से भर लिया. और मोगरे भरी उन हथेलियों से अपना पूरा चेहरा ढंक लिया. उस वक्त दिन और रात के मध्य का ऐसा समय था जब दिन और रात के संतरी ड्यूटी बदलते हैं और कुछ देर को सांझ की बेला दिन और रात के सिपाहियों से खाली होती है.

इसके पहले की रात अपनी उदास सूरत लिए नमूदार होती मैंने मोगरे के फूलों को धागे में पिरोकर बालों में पहन लिया. अब मैं उदास सूरत लिए पीछे घूमती रात से बचती फिर रही हूँ...
क्या तुम तक मोगरे की खुशबू पहुँचती है?

1 comment:

ANHAD NAAD said...

पेड़ पौधे फूल ही हैं । जिन्हें पानी , खुली हवा और मिट्टी का स्पर्श मिले तो शिकायत नहीं करते।