Friday, January 1, 2021

सुबह मिल ही गयी इक रोज



तय किया था कि रात से ही सुबह का पता पूछकर उसकी राह तकूंगी. रात ने कहा था कि सुबह को अगर उसके दिन में दाखिल होते ही मिल लिया जाय तो वो कुछ देर ठहरती है. सोचा सारी रात जागूंगी और कैलेडर वाली नयी सुबह की पहली किरन से मिलकर पूछूंगी इस नए साल का भेद. उसे तो पता होगा कि इस साल की बंद मुठ्ठी में क्या है. लेकिन रात अपना हिस्सा मांगती है. और नींद आ ही गयी. सुबह उठी तो सुबह खिड़की पर टंगी हुई थी. आँख खुली ही थी रौशनी का टुकड़ा मेरी आँखों पर गिरा. अच्छा तो यह शरारत है सुबह की. वो कबसे राह ताके थी कि मेरा वादा था उसे मिलूंगी फिर दोनों देर तक गप्प मारते हुए घूमने जायेंगे. पत्तियों पर ठहरी ओस की बूँदें देखने का सुख ज्यादा देर नहीं ठहरता, न इंतजार करता है. मैंने ओस की बूंदों को हथेलियों में समेट लिया है. अब सुबह के साथ वो बूँद भी मुझे देख रही है. सुबह अपने साथ कितनी सौगातें लेकर आती है. और मैं नींद की दुलारी...आज सुबह की उन सब सौगातों को समेट लिया है. देर से ठहरी हुई है वो. अब तक तीन चाय पी चुकने के बाद एक और चाय पीने की इच्छा से खेल रही हूँ.
मैंने सुबह के कान में फुसफुसा कर पूछा, 'सुनो यह साल अच्छा है न?' उसने पलकें झपकाते हुए पलटकर पूछ लिया, 'यह लम्हा अच्छा है न?. मुझे जवाब मिल चुका था.
सुबह को शाल की तरह कसकर लपेट लिया है. पंडित जसराज गा रहे हैं राग भैरव...


1 comment:

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

नववर्ष की मंगलकामनाएं v