तब नहीं आयेगी सुबह
वो आयेगी जब
तुम्हारे शहर से होकर आयेगी
जब बारिश आयेगी
तब कहाँ आयेगी बारिश
वो तो तब आयेगी
जब साथ बिताये पलों की स्मृतियों से
तर ब-ब-तर हो उठोगे तुम
धूप ठिठकी रहेगी देहरी पर
बस कहने को जरा सी बात
कि तुम्हें छूकर नहीं आ सकी आज
तुम सोये रहे देर तक
और काम पर निकलना था
धूप को
उदास थी वह
उदास दिनों की
उदास कलियो ने
कान में फुसफुसा कर कहा
जब सब बिछड़े लोग मिलेंगे अपनों से
तब हम खिलेंगे संग-संग
5 comments:
Khushamdeed
वाह।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 09 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर
आसा का संचार करती सुन्दर रचना।
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