Friday, November 20, 2020

यूं मिलती हूँ मैं मारीना से- नीरा त्यागी

-नीरा त्यागी 
होली से एक दिन पहले, हिचकिचाती हुई पहली मंजिल के फ़्लैट में प्रवेश करती हूँ कमरे में किसी को न पाकर वापस दरवाजे पर लौटकर घंटी बजाती हूँ प्रतिभा किचन से निकलते हुए मेरा स्वागत करती है मैं आपके फोन का इंतज़ार कर रही थी. किचन से उड़ती खाने की महक भरे पेट में भूख जगा देती है. तभी हंसी के फव्वारों, होली के रंगो से सरोबर तूफ़ान (ख़्वाहिश और उसके दोस्त) ड्राइंगरूम पर कब्ज़ा कर लेते हैं. वो अपनी चहेती आंटी के साथ होली खेलते हैं फिर उन्हें दरी बिछा कर ज़मीन पर बैठाया जाता है ताकि उनके पेट उनकी फेवरेट आंटी के बनाये खाने पर धावा बोल सकें। बच्ची की छेड़छाड़, उनकी हंसी, खिखिलाहट, प्लेट में चम्मचों की खटपट और रसोई में चकला-बेलन की तालमेल ड्राइंगरूम में ही नहीं मेरे भीतर के सन्नाटों में भी संगीत भर देती है. खुश रहना तो सिर्फ बच्चों से ही सीखा जा सकता है. प्रतिभा दो चाय के प्याले लिए मेरे पास बैठी है और शुरू होता है हमारी बातों का सिलसिला. हम ड्राइंगरूम से शुरुआत करते हैं, फिर छत पर मसूरी के पहाड़ों की पहचान करते हुए, फागुन की गुनगुनी धूंप में नहाते हुए, अंगूर के दाने फांकते हुए, वापस ड्राइंगरूम में और फिर नीचे गलियारे में फ्लैटों का चक्कर लगाते हुए दोपहर से शाम के अँधेरे तक बात करते हैं। लौटने का समय आया और प्रतिभा ने कह कर टाल दिया कुछ घंटे और रात के अंधेरों में अकेले सफर करने से मुझे आज भी डर लगता है प्रतिभा का आग्रह और एक और प्याली साथ पीने का लालच मेरे डर को उलटे पाँव भगा देते हैं. बारी आती है मरीना को छूने की, हाथ में पकड़ने की, सूंघने की. दो प्रति थामे मैं भारी दिल से विदा लेती हूँ. घर लौट कर एक प्रति पापा को भेंट करती हुँ जिसे वह दो दिन में पढ़ कर समाप्त कर देते हैं वो ज्यादा शब्दों में कहने के आदी नहीं हैं वो सिर्फ इतना कहते हैं " बड़े रोचक और सुन्दर शब्दों से गढ़ी अलग किस्म की किताब है. इसे रचने में काफी मेहनत की गई है." मरीना की दूसरी प्रति मेरे साथ लम्बी यात्रा करती है.
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प्रतिभा की किताब मरीना कहने को जीवनी है पर पढ़कर ऐसा लगता है जैसे दो अलग-अलग युग में पैदा हुई औरतों की तपस्या की कहानी है. मरीना त्स्वेतायेवा जो एक संभ्रात परिवार में पैदा होकर, राजनैतिक उठापटक की वजह से कभी रूस के शहरों में, कभी बर्लिन, प्राग, पेरिस में भटकती है, तमाम उम्र अपने परिवार का पेट भरने और उनके लिए छत जुटाने के संघर्ष से झूझती रही. इस सब के बावजूद अपनी कलम के प्रति वफादार रही. दूसरी और इस युग की प्रतिभा है जिसकी तपस्या मरीना पर किताब लिखना था. लिखने के लिए पहले शोध, मरीना के बारे में मेटीरियल इकट्ठा करना, लोगों से मिलना, जेएनयू में रहना और फिर लिखना. यह एक साधना की तरह है जिसे प्रतिभा ने बखूबी निभाया है. प्रतिभा को मरीना की कविताओं की किताब अपने पिता के घर में बचपन में मिली और एक नन्ही बच्ची मरीना की तस्वीर और कविताओं पर मर मिटी. बरसों बाद प्रतिभा ने अपने पहले प्यार को इस किताब के रूप में अंजाम दिया. 

लेखिका ने मरीना की ज़िंदगी में आये परिचितों, दोस्तों, प्रेमियों को उसके द्वारा लिखे खतों के जरिये जाना है, किताब के हर कोने से हर उस स्त्री की वेदना और विवशता की अनुगूँज है जिन्हें आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और पारिवारिक परिस्थितियां कविता लिखने से दूर करती हैं किस प्रकार मरीना असंभव हालात में भी कविता लिखने की भूख का पोषण करती नज़र आती है. यह किताब उन सभी औरतों के लिए पथ प्रदर्शक है जो अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए छटपटाती रहती हैं क्योंकि माँ और पत्नी की जिम्मेदारियां, घर की सफाई, चौका-बर्तन, राशन जुटाने की जद्दोजहद, बच्चो की परवरिश में अपनी सारी ऊर्जा झोंकने के बाद अपनी कला के लिए ऊर्जा न जुटा पाने को अभिशप्त हैं. मरीना का चरित्र किताब में इस तरह उतर कर आता है कि वो बार- बार पाठक को याद दिलाता है किस प्रकार मरीना विपरीत परिस्थितियों में भी अपने कलात्मक रुझान के प्रति वफादार रही. मरीना ने जागते हुए लिखा, नींद में लिखा, दौड़ते-भागते लिखा, बग्घी में, ट्रेन में लिखा, कमरे में रखी मेज पर लिखा, रसोईघर में खाना बनाते हुए लिखा पीढ़े पर बैठ कर लिखा, उसने अपनी बेटी की मौत पर लिखा. मरीना ने कवितायें लिखी, लेख, संस्करण, डायरी और पत्र लिखे, उसने लोककाव्य, नाटक और बच्चो के लिए कहानियां लिखी. उसने प्रेम में और प्रेम की टूटन में लिखा. यह किताब मरीना के लिखने की ताकत का हर मुमकिन और नामुमकिन हालात में विजयी होने का जीता-जागता सबूत है.

अध्याय के बाद बुकमार्क है जिसमें लेखिका और मरीना के बीच छोटे-छोटे संवाद है यह संवाद देह और आत्मा के अंतर को समाप्त करता नज़र आता है वह दोनों मुखौटे उतार एक दूसरे के सामने होती हैं बात करती हैं प्रश्न पूछती हैं इकट्ठे चाय पीती हैं उन दोनों के बीच का संवाद पाठक को उस धरातल पर ले चलता है जहां मरीना कौन है और प्रतिभा कौन दोनों का अंतर समाप्त हो जाता है.

इस किताब को पढ़ने में जो सबसे ज्यादा आँखों में अटकते है वो हैं रूसी नाम, उस नाम से जुड़े चरित्र को याद रखना और चरित्र का मरीना से रिश्ते को याद रखना कठिन हो जाता है लेकिन फिर भी बहुत से परिचित नाम भी हैं जो मरीना की ज़िंदगी में आये, मरीना का रिल्के और गोर्की, से उसका पत्राचार रहा. मरीना पर लिखी किताब जीवनी होते हुए भी जीवनी नहीं है और अनुवाद होते हुए भी अनुवाद नहीं है यह जीवनी और अनुवाद दोनों से कुछ हटकर और कुछ बढ़कर है. लेखिका मरीना की ज़िंदगी की टोह उसके द्वारा लिखे गए खतों से लेती हैं जो मरीना ने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को लिखे. मरीना अपनी आर्थिक समस्याओं और मुश्किल हालात के प्रति काफी पारदर्शी थी यह उनके खतों से जाहिर है. मरीना के संघर्ष, उनकी गरीबी, बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा की कवायद, बेहरत जीवन और सुरक्षित छत की तलाश में एक देश से दूसरे देश में भटकने को प्रतिभा ने मरीना के खतों के मार्फ़त इस किताब में लिखा है. इसके अलावा लिखने के प्रति मरीना की जिजीविषा और तड़पन को प्रतिभा ने खुद जिया है तभी तो वह इस तड़प की नब्ज़ को पाठकों की अँगुलियों पर रख देती है.

1 comment:

Onkar said...

बहुत सुंदर