Thursday, December 27, 2018

'ओ अच्छी लड़कियो' की गोवा यात्रा


शुभा मुद्गल जी की आवाज में ढला 'अली मोरे अंगना' सुनती थी तो रिपीट मोड में सुनती ही जाती थी. उनकी आवाज में ढला हर गीत जो एक बार साथ हुआ, तो उससे कभी साथ छूटा ही नहीं. रेनकोट का गीत 'पिया तोरा कैसा अभिमान' तो दिल में शुभा जी की तरह ही बेहद ख़ास जगह रखता है. वही शुभा मुद्गल अगर कहें कि, 'प्रतिभा जी, आपकी कविता को संगीत में ढालना चाहती हूँ' तो मेरी क्या स्थिति होगी, समझा जा सकता है.

उन्होंने और अनीश प्रधान जी ने 'ओ अच्छी लड़कियों' को गोवा में होने वाले Serendipity Arts Festival 2018 के लिए चुना. 15 से 22 दिसम्बर तक आठ दिन तक चलने वाले इस फेस्टिवल में सातवां दिन हिंदी कविताओं के नाम रहा जिन्हें संगीतबद्ध किया अनीश प्रधान और शुभा मुद्गल जी ने, और जिन्हें अपनी खूबसूरत, दिलकश आवाज से सजाया ओमकार पाटिल और प्रियंका बर्वे ने. कविताओं के इस गुच्छे को Maverick Playlist का नाम मिला जिसमें केदारनाथ सिंह, नज़ीर अकबराबादी, मीराबाई, पल्टूदास, शुभा मुद्गल और प्रतिभा कटियार यानी मेरी कविता को चुना गया.

मेरे लिए गोवा की यह यात्रा असल में कविता यात्रा ही थी, इस जिज्ञासा के साथ कि किस तरह ढलेगी यह कविता संगीत में और कैसे कोई गायेगा इसे. शुभा जी और अनीश जी ने बहुत मोहब्बत से तमाम कविताओं को संगीत दिया और ओमकार तथा प्रियंका ने उतनी ही शिद्दत और मोहब्बत से इन्हें आवाज दी.

वह एक जादुई शाम थी जब शुभा जी से जी भर के गले लगते हुए मेरी आँखें सुख से छलक पड़ी थीं. पूरे कार्यक्रम में वो मेरे करीब बैठी थीं और पूछती जा रही थीं कि ठीक बना है न संगीत? उन्होंने मुझे बैकस्टेज ही बता दिया था कि उन्हें यह कविता इतनी पसंद है कि इसी से कार्यक्रम का समापन किया जायेगा.

शुभा जी के करीब बैठकर कविताओं को सुरों में ढलते देखने की यह जादुई शाम थी. सभी कवितायें संगीत में रच-बसकर और खूबसूरत हो उठी थीं. मैं जैसे किसी जादुई लम्हे में थी. ओमकार बेहद शानदार कलाकार हैं. उनकी जिन्दादिली और मीठी आवाज ने कविता को जिस अपनेपन से गया उसे सुनकर ही महसूस किया जा सकता है.

शुभा जी, अनीश जी, आपसे मिला मान और स्नेह कीमती पूँजी हैं, जिसे उम्र भर संभाल कर रखूंगी. ओमकार, तुम्हारी आवाज बस गयी है दिल में. तुम जादूगर हो सच में. दोस्त अजय गर्ग, अगर आप साथ न होते तो इन लम्हों को मैं किस तरह अकेले समेट पाती भला! प्यारी प्रेरणा, तुम्हारे बगैर कुछ भी कहाँ संभव था...!

यह प्यार बना रहे...संगीत, कला, साहित्य और लहरों का साथ बना रहे!
दोस्त बने रहें!

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-12-2018) को "नव वर्ष कैसा हो " (चर्चा अंक-3199)) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Pratibha Katiyar said...

Shubha Mudgal प्रतिभा जी, आपसे गोवा में मिलना, कुछ पल बातचीत करना, अनीश और मेरे लिए बहुत ही आनन्ददायक रहा । सच पूछिए तो हम दोनों चिंतित थे कि आपको अनीश और मेरी बनाई “ ओ अच्छी लड़कियों” की धुन पसन्द आएगी या नहीं, music arrangement आपकी कृति के लिए उपयुक्त लगेगा या नहीं । तैयारी करते समय मैं बेचारे ओमकार को भी चेतावनी देने से नहीं चूकती थी और बार बार उसे याद दिलाती कि देखना, प्रतिभा जी उपस्थित होंगी कार्यक्रम में, ध्यान से गाना उनकी कविता ! लेकिन आपने तो हम सब को मिलते ही आश्वस्त कर दिया और हमारा हौसला बढ़ा दिया । आपकी कविता ने तो अनीश और मुझेसे बहुत सारी बातें कहीं - एक ओर झकझोर कर रख दिया, साथ ही चुनौती भी दी कि चलो, अगर इतने ही प्रभावित हो तो इसे संगीतबद्ध कर दिखाओ ना । आपको हमारा प्रयास और ओमकार की प्रस्तुति पसंद आई, ये सुनकार अलग सा ही आनन्द मिला । आशा है कि भविष्य में हम इस रचना को और तैय्यारी के साथ फिर सुना सकेंगे संगीत और साहित्य प्रेमियों को । और आपसे, अजय जी से, फिर मिलने का, बात करने का लालच तो मन में भरा हुआ है ही । जल्द मिलेंगे, इस आशा के साथ आपको ढेर सा धन्यवाद 🙏

Pratibha Katiyar said...

Omkar Patil- It's a different feeling and pressure too to perform an original composition in front of the composer and the lyricist . But all went very well because of this super hit jodi Shubhaneesh :) and the lovely musicians who are pillars of every song and held us firm on every step.

Pratibha Katiyar said...

Nikhil Malik =नमस्कार प्रतिभा जी, मुझे और मेरे मित्र सृजन को शुभा जी और अनीश जी के साथ आपकी कविता “अच्छी लड़कियों” के संगीत पे काम करने का मौक़ा मिला ।

मुझे आपसे मिलने की बहुत इच्छा थी । मुझे आपको धन्यवाद करना था ऐसी ख़ूबसूरत और सुंदर कविता लिखने के लिए । मुझे अभी भी याद है, मै मंच पर ये गाना बजा रहा था और अंत तक मेरी आँखें भर आयीं ।

“पहन के देखो लोगों की नाराज़गी का ताज, एक बार”

मैंने शायद इससे ज़्यादा प्रभावशाली एवं शक्तिशाली पंक्तियाँ नहीं सुनी और ना ही सुनने की इच्छा है । आपके शब्दों ने किया ऐसा कमाल, जिससे हमारा प्रदर्शन हुआ धमाल ।

धन्यवाद, एक बार और प्रतिभा जी । मेरी हिंदी के लिए मुझे माफ़ कीजिएगा ! 👏