Sunday, July 29, 2018

असफल प्रेमिकाएं- असीमा भट्ट




वो प्रेतात्माएं नहीं थीं
वो प्रेमिकाएँ थीं
वो खिलना जानती थीं फूलों की तरह
महकना जानती थीं खुशबू की तरह
बिखरना जानती थीं हवाओं की तरह
बहना जानती थीं झरनो की तरह
उनमें भी सात रंग थे इंद्रधनुषी
उनमें सात सुर थे
उनकी पाज़ेब में थी झंकार .
वो थीं धरती पर भेजी गयी हब्बा की पाकीज़ा बेटियां
जिन्हें और कुछ नहीं आता था सिवाय प्यार करने के
वो बार बार करती थीं प्यार
असफल होती थीं.
टूटती थीं
बिखरती थीं
फिर सम्हलती थीं
जैसे कुकनूस पक्षी अपनी ही राख से फिर फिर जी उठता है
फिर प्यार करती थीं
उसी शिद्दत से और उसी जुनून से
दिल ओ जान लुटाना जानती थीं अपने प्रेमियों पर
दे देना चाहती थीं उन्हें दुनिया भर की खुशियाँ
बचा लेना चाहती थीं दुनिया की हर बुरी नज़र से
कोई भी बला आये तो पहले हमसे होकर गुज़रे
अपने रेशमी आंचल को बना देती थीं अपने प्रेमियों का सुरक्षा कवच
बन जाती थीं उनके लिए नज़रबट्टू लगा कर आँखों में मोटे मोटे काजल
उनके लिए बुनती थीं स्वेटर और सपने दोनों
गुनगुनाती रहती थीं हर वक़्त अपने अपने प्रेमी की याद में
खोयी खोयी अनमनी
अपनी ही धुन में
न किसी का डर
न दुनिया की परवाह
करती थीं रात रात भर रतजगा
और
ऊपर से कहती थी - ख्वाब में आके मिल
उनींदी आँखें लाल होती हैं असफल प्रेमिकाओं की
जैसे रात भर किसी जोगी ने रमाई हो धुनी

असफल प्रेमिकाएँ करती हैं व्रत, रखती है उपवास
बांधती हैं मन्नत का धागा
लगाती हैं मंदिरों और मज़ारों के चक्कर
देती हैं भिखारियों को भीख और मांगती हैं दुआँ में अपने प्यार की भीख
‘मुद्दत हुई है यार को मेहमां किये हुए’ कहते हुए गाती थी
‘हम इंतजार करेंगे तेरा क़यामत तक’
वो भूल जातीं दिन, महीने और तारीख
भूल जातीं खाना खाना
बेख्याली में कई बार पहन लेतीं उलटे कपड़े
लोग कहते - कमली है तू
और वो खुद पर ज़ोर ज़ोर से हँसतीं
बहाने बनातीं
जल्दी में थी
कमरे में अन्धेरा था
क्या करती, ठीक से दिखा ही नहीं
असफल प्रेमिकाएँ बचाये रखती हैं हर हाल में अपना विश्वास
बचाए रखती हैं अपने प्रेमी के प्रेमपत्र और उनकी तस्वीरें
गीता और कुरआन की तरह .

असफल प्रेमिकाएँ जब जब रातों को अकेली घबरा जाती हैं, रोती हैं तकिये
में मुंह रख कर
सोचती
नितांत एकांत रात में
सन्नाटे को चीरती हुई
उनकी चीत्कार ज़रूर पंहुचती होगी उनके प्रेमी के कानों में
वो अच्छा हो, वो भला हो
सब ठीक हो उनके साथ
कोई आफत न आयी हो उनके पास
जहाँ भी हो सुखी हो
मन ही मन बस यही कामना करती हैं असफल प्रेमिकाएँ
असफल प्रेमिकाएँ लगने लगती हैं असमय बूढ़ी
आ जाती है बालों में समय से पहले सफ़ेदी
और गालों पर झुर्रियां
वो झेल जाती हैं सबकुछ
नहीं झेल पातीं तो अपने प्रेमी द्वारा दी गयी पीड़ा, यातना, उपेक्षा और अपमान
लम्बी फेहरिश्त है असफल प्रेमिकाओं की
जो या तो पागल हुईं
या कुछ ने अपना लिया अध्यात्म
आश्रम या मेंटल एसालम बना उनका घर
वो जिसने खा ली नींद की गोलियां
या काट ली कलाई
किसी से न बर्दाश्त हुआ सदमा और रुक गयी दिल की धड्कन
बहुत उदास और अपमानित हो कर गयीं दुनिया से
वो मरी नहीं
उन्होंने आत्महत्या नहीं की
हत्या हुई उनकी
वो लोग जो उनसे प्यार का नाता जोड़ कर देने लगे समझदारी भरा बौद्धिक तर्क
कहने लगे - प्यार का कतई यह मतलब नहीं कि हमेशा साथ रहें.
हम दूर रह कर भी साथ रह सकते हैं
खुश रह सकते हैं
दूर हैं, दूर नहीं
वो कहती रहीं - एक झलक देखना चाहती हूँ
छूना चाहती हूँ तुम्हें
महसूस करना चाहती हूँ तुम्हारी साँसें
तुम्हारी मजबूत बाहों में पहली बार जो गरमाहट और सुरक्षा महसूस किया
था फिर से करना चाहती हूँ वैसा ही मह्सूस
और तुम ज़ोर से हँसते हुए कहते - ‘क्या बचपना है, यह सब बकवास है.’
ले ली उनकी जान इस बकवास ने
तुम्हारे आपराधिक प्रवृति ने
तुम्हारी कुटिल हंसी ने
तुम उड़ाने लगे उनका मज़ाक
खेलने लगे मासूम भावनाओं से
खेलने लगे उनके दिल से
कहती रहीं - खेलो न मेरे दिल से
पूछती रहीं - यह तुम्हीं थे
कौन था वो जो पहरों पहर मुझसे फोन पर करता था बातें
हरेक छोटी छोटी बातें पूछता
अभी कैसी लग रही हो
क्या पहना है
क्या रंग है
बताओ

बताओ ओ प्रेमी !
क्या तुम्हें नहीं लगता
वो बनी ही थीं प्यार करने के लिए
और तहस नहस करके रख दी उनकी जिंदगी
तुमने ले ली उनकी जान
अब डर लगता है तुम्हें
वो कहीं से प्रेतात्माएं बन कर आयेगीं और तुम्हें डरायेंगी
डरो मत
वो प्रेमिकाएँ हैं
प्रेतात्माएं नहीं
वो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ती
वो तो क़ब्र में भी गाती हैं अपने प्रेमी के लिए शगुनों भरी कविता
देखना वो अगले बसंत फिर से निकलेंगी अपनी अपनी कब्र से बाहर
और करेंगी प्यार
और यह धरती जब तक अपनी धूरी पर घूमती रहेगी
तब तक वो करती रहेंगी प्यार
और पूरी दुनिया को सिखाती रहेंगी प्यार ...
https://www.youtube.com/watch?v=LhzBPGTydSs

6 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

गजब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (31-07-2018) को "सावन आया रे.... मस्ती लाया रे...." (चर्चा अंक-3049) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Atoot bandhan said...

बहुत सुंदर रचना

मन की वीणा said...

अद्भुत!!
अप्रतिम।

राज said...


बहुत सुंदर रचना

Unknown said...

बहुत सुन्दर और मार्मिक