Tuesday, January 9, 2018

कपूर की तरह उड़ जाना चाहती हूँ


न शोर, न उदासी कोई
बस एक खुशबू घुल जाए फिजाओं में
उस रोज धरती पर हर दिन से ज्यादा खिलें फूल
बच्चों की शरारतों में घुलें ताजा रंग

आसमान धरती का हाथ थामने को आये तनिक और करीब
लहरों के संगीत से आच्छादित हो उठे धरती
और महफूज हो जाएँ प्रेमियों के ठिकाने
जब हो मेरी अंतिम विदा का वक़्त

कि मैं देह के अंतिम संस्कारों से घबराती हूँ
इसलिए कपूर की तरह उड़ जाना चाहती हूँ
मेरी देह की तलाश पूरी हो रजनीगंधा के खेतों में,
बच्चों की खिलखिलाहटों में
बुलबुल के जोड़े की शरारतों में

कोई माला न हो तस्वीर पर नकली भी नहीं
कि मैं तुम्हारी यादों में हमेशा जिन्दा रहना चाहती हूँ

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-01-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2845 में दिया जाएगा

धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें