आज जो लिखने जो रही हूँ वो शायद कभी लिखा नहीं. सोचा भी नहीं. कुछ शरारती सा हो रहा है मन कि बड़े दिन बाद किसी पर दिल आया है. फ़िदा फ़िदा सा फील हो रहा है. बॉलीवुड के अभिनेताओं में सबसे पहले जिसको लेकर फ़िदा फ़िदा सा फील हुआ था वो थे शेखर कपूर. फ्रॉक वाले दिनों में 'उड़ान' धारावाहिक देखते हुए डीएम सीतापुर साहब अच्छे लगने लगे थे. आज भी लगते हैं. इसके बाद आमिर खान, अनिल कपूर से होते हुए राहुल बोस, नागेश कुकनूर, इरफ़ान, रणदीप हुड्डा (सिर्फ हाइवे फिल्म में) से चलते हुए बड़े दिन बाद मिला है कोई राजकुमार. राजकुमार राव इन दिनों नये शामिल हुए हैं पसंदीदा अभिनेताओं की लिस्ट में.
राजकुमार राव की जिस जिस फिल्म ने अलग से ध्यान खींचा था वो थी 'ट्रैप्ड'. गजब की अभिनय क्षमता. इसके बाद 'न्यूटन' ने दिल जीत लिया. 'अलीगढ' 'क्वीन' 'सिटी लाइट्स' 'हमारी अधूरी कहानी' का असर जो बैकग्राउंड में कहीं था वो अब सामने आ गया. 'काई पो चे' का ख़ास असर नहीं हुआ था मुझ पर और 'शाहिद' अभी तक देखी नहीं है. 'ट्रैप्ड' जो मैंने हाल ही में देखी उसके बाद तो राजकुमार साहब राजकुमार हो गए. इसके बाद 'बरेली की बर्फी' में बन्दे की कलाकारी हीरो पर भारी पड़ी. किसी के फैन होने की यह इंतिहा ही होती होगी शायद कि ''मेरी शादी में जरूर आना' भी हॉल में देख आई. दिमाग फिल्म को लगातार कोसता रहा और दिल स्क्रीन पर अटका रहा. पहली बार किसी हीरो पर इस तरह फ़िदा हूँ...सुख में हूँ. जब तक कोई नया न आये राजकुमार साहब रहने वाले हैं...इरफ़ान तो हैं ही. मेरी दोस्त कहती है एक साथ कितनो की फैन हो सकती हो? मैं हंसकर कहती हूँ सबकी जगह सुरक्षित है. कोई किसी को डिस्टर्ब नहीं करता...हा हा हा...
(फीलिंग फनी)
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