तुम्हारी याद किसी फांस सी धंस गयी थी
टीसती रहती थी लगातार
टप टप टप...टपकता रहता था कोई दर्द
निकालने की कोशिश में
उसे और भीतर धंसा देती थी
दर्द की लहक बढ़ जाती थी
यह दर्द आदत बन चुका था
इस दर्द से मुक्ति की लगातार कोशिश
असल में फांस को भीतर धकेलने की कोशिश
दर्द को जिन्दा रखने की कोशिश थी
खुद को भी
एक रोज फांस को निकालने के बहाने जब
स्मृतियों की महीन सुई से उसके संग खेल रही थी
वो फांस निकल ही गयी एकदम से
धीरे-धीरे खत्म हो गया दर्द
जीवन भी...
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