इंग्लैण्ड के प्यारे रूमानी कवि जॉन कीट्स (1795-1821) ने बहुत छोटी सी ज़िन्दगी जी. लेकिन उस छोटी सी जिंदगी के रंग इतने गाढ़े थे कि उनकी चमक उन रंगों की महक आज तक फ़िज़ाओं में मौजूद है. 23 बरस की उम्र में कीट्स को पड़ोस में रहने वाली फैनी ब्राऊन से प्यार हो गया. लेकिन ज़िन्दगी कीट्स के हिस्से में इतनी कम आई थी कि प्यार बस प्यार ही रहा, किसी रिश्ते के अंजाम तक नहीं पहुँच सका. ट्यूबरकोलोसिस ने कीट्स की जान ले ली लेकिन उनका प्यार अब भी कायम है... उनकी कविताओं में, उनके खतों में, कुछ इस ख़त में भी...
प्रिय फैनी,
तुम्हारे बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है. तुम्हें पता है, मैं सब कुछ भूल जाता हूँ सिवाय तुम्हारे। तुम्हारे बिना ज़िन्दगी ठहरने लगती है, मैं तुम्हारे बिना कुछ भी सोच नहीं पाता। तुमने मुझे अपने भीतर समाहित कर लिया है.
मुझे ऐसा एहसास होता है जैसे मैं तुम्हारे भीतर घुलता जा रहा हूँ. मैं यह सोचकर अचंभित होता हूँ कि किस तरह लोग धर्म के लिए अपनी जान दे देते हैं. यह सोचकर मेरे रोएं खड़े हो जाते हैं कि किस तरह लोग ऐसा कर पाते होंगे. फिर मैं सोचता हूँ कि मैं भी ऐसा कर सकता हूँ शायद लेकिन मेरा धर्म क्या है...
मेरा धर्म है प्यार, मैं प्यार के जान लिए दे सकता हूँ, मैं तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ. प्यार ही मेरा धर्म है और इस धर्म के सारे रीति रिवाज़ सिर्फ तुम हो.
तुम मुझे अपने प्यार की ताक़त से सबसे दूर चुराकर ले जा चुकी हो, जिसका विरोध मैं करना भी नहीं चाहता।
तुम्हारा
कीट्स
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