- नाज़िम हिकमत
घुटनों के बल बैठा
मैं निहार रहा हूँ धरती,घास,
कीट-पतंग,
नीले फूलों से लदी छोटी टहनियाँ.
तुम बसन्त की धरती हो, मेरी प्रिया,
मैं तुम्हें निहार रहा हूँ।
पीठ के बल लेटा
मैं देख रहा हूँ आकाश,
पेड़ की डालियाँ,
उड़ान भरते सारस,
एक जागृत सपना.
तुम बसन्त के आकाश की तरह हो, मेरी प्रिया,
मैं तुम्हें देख रहा हूँ।
रात में जलाता हूँ अलाव
छूता हूँ आग,
पानी,
पोशाक,
चाँदी.
तुम सितारों के नीचे जलती आग जैसी हो,
मैं तुम्हें छू रहा हूँ।
मैं काम करता हूँ जनता के बीच
प्यार करता हूँ जनता से,
कार्रवाई से,
विचार से,
संघर्ष से.
तुम एक शख़्सियत हो मेरे संघर्ष में,
मैं तुम से प्यार करता हूँ।
(अंग्रेज़ी से अनुवाद : दिगम्बर)
5 comments:
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आपकी कविता हमे अच्छी लगी ।धन्यवाद ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2591 में दिया जाएग्या
धन्यवाद
कविता के उच्च मानदंड स्थापित करती मार्मिक रचना. बधाई!
सुन्दर शब्द रचना.......
http://savanxxx.blogspot.in
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