Monday, April 4, 2016

ओ री जिन्दगी



ओ री जिन्दगी
कर ले तू कितनी ही चालबाजियां
उलटबासिया
कलाबाजियां
खेल ले चाहे कितने ही खेल
आजमा ले कितना ही हौसला
खड़ी कर ले मुश्किलों की कितनी ही बाड
दिन के शफ्फाक उजालों में घोल के देख ले
निराशाओं के कितने ही अँधेरे
हारेंगे नहीं हम
किसी कीमत पे नहीं
कि तुझसे अपनी मोहब्बत जीकर निभाएंगे
गिले-शिकवे करने को भी
जीना तो जरूरी है न ?


1 comment:

रश्मि शर्मा said...

कि तुझसे अपनी मोहब्बत जीकर निभाएंगे
गिले-शिकवे करने को भी...बहुत ही प्रेरक कवि‍ता