अपने बच्चो को कलेजे से ज़ोर से चिपकाते वक़्त उन माओं का ख्याल आता है जिनकी आँखों के आंसू जर्द हो चुके हैं. वो माएं जिन्हें कई दिन से टल रही नन्ही फरमाइशें जिंदगी भर रुलायेंगी. याद आएगा उनके लिए आखिरी बार टिफिन बनाना, आखिरी बार लाड करना, कहना कि लौट के आने पर बना मिलेगा पसंद का खाना, दूध नहीं पियोगे तो बड़े कैसे होगे कहकर रोज दूध का गिलास मुंह से लगा देना और ख़त्म होने पर कहना शाबास!, ख्वाब में बच्चों का आना और पूछना कि, अम्मी मैं तो रोज दूध पीता था फिर भी बड़ा क्यों नहीं हुआ, पूछना उन मासूम रूहों का कि क्या दुनिया का कोई इरेज़र ये दिन मिटा नहीं सकता?
उनके बस्तों में रखे सारे इरेज़र उदास हैं.…
3 comments:
संवेदनशील। ।
स्तब्ध हूँ -कहने को कुछ नहीं !
सार्थक रचना
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