बड़ा पेड़ - तुझे कैसे पता कि मैं आसमान के पास हूँ?
छोटा पेड़- देखकर लगता है.
बड़ा पेड़- (हा हा हा) जिस रोज देखे हुए को सच मानने से मुक्त होगे, उस रोज मिल जायेगा तुम्हें अपने सवाल का जवाब भी.
छोटा पेड़- (अनमना होकर ) मत बताओ। लेकिन ज्ञान मत दो. हुँहहहह
बड़ा पेड़- अच्छा सुनो, मैं आसमान के पास नहीं गया. एक रोज मेरे कानो से होकर गुजरा एक शब्द 'इश्क़' उसी रोज ये आसमान झुककर मेरे करीब आ गया.…
ऊँचाई क़द की नहीं इश्क़ की होती है....समझे ?
छोटा पेड़- (सर खुजाते हुए) पता नहीं, हाँ शायद, नहीं शायद
बड़ा पेड़- हा हा हा.…
(कमबख्त इश्क़ )
5 comments:
सुन्दर प्रस्तुति।
अहा! बहुत सुन्दर
ऊँचाई क़द की नहीं इश्क़ की होती है.. :)
इश्क की गुफ्तगू ... शायद वाही सबसे बड़ा है ...
ऊंचाई कद से नहीं होती !
सत्य ही !
सही कहा
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