अब उन्हें मुझसे डर नहीं लगता। दोस्ती के शुरू-शुरू के दिनों में मैं उन्हें हसरत से देखती थी और वो मुझे कनखियों से। मेरी गैरहाजिरी में वो मुक्त होकर खेलती खिलखिलाती थीं, लेकिन मेरे आते ही वो अपने पंख समेट लेतीं। कुछ तो उड़ भी जातीं। अगर मैं अचानक पहुंच जाउं तो सब की सब फुर्रर्रर्र....फिर मैंने अपनी आहटों को समेटा। उन्होंने अपने डर को....संकोच को। अब मैं बेफिक्र होकर कभी भी उनके पास जाकर बैठ जाती हूं, वो पूरी शरारत से मेरे आसपास टहलती रहती हैं।
कनखियों से देखने का मौसम अब रहा नहीं। अब हम एक-दूसरे को खुलकर देखते हैं, प्यार से, शरारत से, कभी-कभी नाराजगी से भी। उन्हें मेरी और मुझे उनकी आदत हो चली है। अब जब उदासियों की चादर ताने कमरे में पड़ी होती हूं तो वो कमरे में भी चली आती हैं बेखटके। मानो कहती हों उठो भी, बहुत हुआ...और मैं मंत्रमुग्ध सी उनके साथ निकल जाती हूं, कमरे से बाहर, खुद से बहुत दूर...
वो एक डाल से दूसरी डाल पर उड़ने का खेल खेलती हैं। एक साथ उपर उड़ना फिर नीचे उतरना और आकर बैठना मेरे एकदम करीब...मानो कह रही हों ले मेरी चोंच से अपना आसमान उतार ले पगली...
मैं चाय का घूंट भरते हुए मुस्कुरा देती हूं। हम एक-दूसरे के आदी हो चले हैं। मैं रोज उन्हें अपने आसपास महसूस करना चाहती हूं। पिछले कई दिनों से बारिशों ने अपना आंचल लहराया हुआ है। बारिशें...बारिशें...बारिशें...काफ्काई हरारतें जिस्म पर तारी हैं, कि बस बूंदों की छमछम सुनना सारी रात...सारा दिन...
मुस्कुराहटों को कहीं न जाने की हिदायतें दिन रात साथ हैं. मुस्कुराहटों में बसी स्याह लकीरों को मिटाने के जतन जारी हैं। वो कहता है कि हंसो तो दुनिया सुंदर होगी....मैं कहती हूं कि जब दुनिया सुंदर होगी तो खुद ही आ जायेगी पक्की मुस्कुराहट।
खैर, हमारा झगड़ा चलता रहेगा..इसी झगडे के बीच देर रात बूंदों को अपनी हथेलियों पर समेटते हुए पहनी थी एक टुकड़ा नींद....सुबह सिरहाने सूरज मुस्कुराते हुए बैठा मिला....बालकनी में लौट आई हैं चहचआहटें...उनका खेल जारी है...धूप के टुकड़े उछालते हुए वो मेरी ओर देखकर मुस्कुराती हैं...मानो कह रही हों....तुमसे प्यार है...
(तस्वीर- मेरी खुद की खींची हुई )
6 comments:
सुन्दर प्रस्तुति, तस्वीर भी बहुत सौम्य प्यार से भरपूर
you have great creative power.
सुन्दर भाव गौरैया के हवाले से ।।।
वाह, क्या प्रवाह है !
कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .
mahadevi verma ki jhalak dikhti hai aap me.......mujhe pachhi aur janvar bahut achhe lagte hai
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