Wednesday, February 12, 2014

ये मुस्कुराहटों की कोपलें फूटने के दिन हैं...


ये रंगों के घर बदलने के दिन हैं

लाओ अपनी हथेलियां
कि इनमें भर दूं खिलखिलाहटें

झरे हुए मन पर
ये मुस्कुराहटों की कोपलें फूटने के दिन हैं

लोग कहते हैं कि ये वसंत के दिन हैं
लेकिन जाने क्यों लगता है कि
ये दुखों के 'बस' 'अंत' के दिन हैं.…

(एँ वे ही कुछ भी)

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

आस का विश्वास, संकेत मौसम लाने लगा है।