ये रंगों के घर बदलने के दिन हैं
लाओ अपनी हथेलियां
कि इनमें भर दूं खिलखिलाहटें
झरे हुए मन पर
ये मुस्कुराहटों की कोपलें फूटने के दिन हैं
लोग कहते हैं कि ये वसंत के दिन हैं
लेकिन जाने क्यों लगता है कि
ये दुखों के 'बस' 'अंत' के दिन हैं.…
(एँ वे ही कुछ भी)
1 comment:
आस का विश्वास, संकेत मौसम लाने लगा है।
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