ओ अच्छी लड़कियों
तुम मुस्कुराहटों में सहेज देती हो दुःख
ओढ़ लेती हो चुप्पी की चुनर
जब बोलना चाहती हो दिल से
तो बांध लेती हो बतकही की पाजेब
नाचती फिरती हो
अपनी ही ख्वाहिशों पर
और भर उठती हो संतोष से
कि खुश हैं लोग तुमसे
ओ अच्छी लड़कियों
तुम अपने ही कंधे पर ढोना जानती हो
अपने अरमानों की लाश
तुम्हें आते हैं हुनर अपनी देह को सजाने के
निभाने आते हैं रीति रिवाज, नियम
जानती हो कि तेज चलने वाली और
खुलकर हंसने वाली लड़कियों को
जमाना अच्छा नहीं कहता
तुम जानती हो कि तुम्हारे अच्छे होने पर टिका है
इस समाज का अच्छा होना
ओ अच्छी लड़कियों
तुम देखती हो सपने में कोई राजकुमार
जो आएगा और ले जायेगा किसी महल में
जो देगा जिन्दगी की तमाम खुशियाँ
संभालोगी उसका घर परिवार
उसकी खुशियों पर निसार दोगी जिन्दगी
बच्चो की खिलखिलाह्टों में सार्थकता होगी जीवन की
और चाह सुहागन मरने की
ओ अच्छी लड़कियों
तुम थक नहीं गयीं क्या अच्छे होने की सलीब ढोते ढोते
सुनो, उतार दो अपने सर से अच्छे होने का बोझ
लहराओ न आसमान तक अपना आँचल
हंसो इतनी तेज़ कि धरती का कोना कोना
उस हंसी में भीग जाये
उतार दो रस्मो रिवाज के जेवर
और मुक्त होकर देखो संस्कारों की भारी भरकम ओढनी से
अपनी ख्वाहिशों को गले से लगाकर रो लो जी भर के
आँखों में समेट लो सारे ख्वाब जो डर से देखे नहीं तुमने अब तक
ओ अच्छी लड़कियों
अब किसी का नहीं
संभालो सिर्फ अपना मान
बेलगाम नाचने दो अपनी ख्वाहिशों को
और फूंक मारकर उड़ा दो सीने में पलते
सदियों पुराने दुःख को
पहन के देखो
लोगों की नाराजगी का ताज एक बार
और फोड़ दो अच्छे होने का ठीकरा
ओ अच्छी लड़कियों...
(पेंटिंग अमृता शेरगिल की आभार गूगल चाचा का )
नोट - 2 दिसंबर 2013 को दैनिक जागरण के पुनर्नवा में प्रकाशित
2 comments:
बेहतरीन कविता लाजवाब
बहुत ही उम्दा
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