Friday, August 9, 2013

रीत न जानूं प्रीत की...



रीत न जानूं प्रीत की
रीत गयी सब टूट…

लाख छुडाऊँ प्रीत पर
क्यों न रही ये छूट…

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मेरी दहलीज पे
छोड़ गए थे जो 'चुप'

वो बहुत 'शोर' करने लगी है
इन दिनों...


9 comments:

Anupama Tripathi said...

चुप्पी का शोर ....सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह ......मेरा मौन थ पहले ही शोर करता था ...अब आपका भी ....

कालीपद "प्रसाद" said...

मौन भी कभी बाचल हो उठता है
latest post नेताजी सुनिए !!!
latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

प्रवीण पाण्डेय said...

सुधरी, सहमी स्मृति बोले,
रुक रुक बोले, पर बोले।

अरुन अनन्त said...

आपकी यह रचना आज शनिवार (10-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

वसुन्धरा पाण्डेय said...

मौन जब बोले...
तो दुनिया डोले...सुन्दर अनुभुति !!

sushila said...

मेरी दहलीज पे
छोड़ गए थे जो 'चुप'

वो बहुत 'शोर' करने लगी है
इन दिनों...

ये चुप बहुत शोर करती है.....सच !
बहुत सुंदर क्षणिकाएँ !

sushila said...

मेरी दहलीज पे
छोड़ गए थे जो 'चुप'

वो बहुत 'शोर' करने लगी है
इन दिनों...

सुंदर क्षणिकाओं के लिए बधाई !

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना
बहुत सुंदर