Wednesday, April 11, 2012

उगना...


' न...अब सांस लेने की कोई गुंजाइश नहीं बची. जीने का जी नहीं करता कि अब सीने में कोई ख्वाहिश नहीं उगती...न ख्वाब आते हैं नींद के गांव में... जीवन अब सहा नहीं जाता, न लडऩे का मन होता है न जूझने का. कोई खुशी खुश नहीं करती न कोई दु:ख उदास करता है. जीवन में अब कुछ भी नहीं बचा जो रोक सके मुझे अपने पास. मुझे जाना ही है अब जिंदगी के पार कि शायद वहां कोई उम्मीद रखी हो मेरे लिए....'

मेज पर टेढ़ी-मेढ़ी सी लिखावट में ये शब्द रखे थे. पेपरवेट के नीचे दबे हुए. मेज के ठीक सामने एक खिड़की थी. खिड़की जो ज्यादा बड़ी नहीं थी, बहुत छोटी भी नहीं. पुराने जमाने के घरों की तरह कुछ सीखचेनुमा सी खिड़की. खिड़की के उस पार से कोई वनलता गुजर रही थी. जिस पर बेशुमार पीले फूलों का कब्जा था. इस कदर कब्जा कि वनलता अपना अस्तित्व ही भूल गई हो मानो. उन फूलों में ही वो अपना होना रख चुकी थी.

ये किसका कमरा है, ये किसकी लिखावट है और मानी क्या हैं इन शब्दों के. क्या कोई इस तरह अंजुरी भर शब्द रखकर जिंदगी से जा सकता है कि उसकी जिंदगी में अब कोई उम्मीद नहीं उगती. कैसे खो जाती हैं सारी उम्मीदें कि निराशाएं कमरे में फैले सारे उजियारे पर काबिज हो जाती हैं और जिंदगी पर भारी पडऩे लगती हैं.
नहीं, उम्मीद कभी उगना बंद नहीं करती कि बस हम उनके उगने पर अपनी निगाहों की बंदिश लगा देते हैं. आगे बढ़ते हुए कदम लगातार पीछे लौटाने लगते हैं. वजह कुछ भी हो, सृष्टि का यही नियम कि उगना कभी बंद नहीं होता.

बंजर से बंजर धरती पर एक न एक दिन कोई फूल खिलता ही है. घनी काली रात के सीने में एक सूरज छुपा ही होता है. रात के सीने में छुपा वह सूरज अपने उगने के सही समय का इंतजार करता है. गर्भ के गृह में एक किलकारी उग रही होती है. किसी चिडिय़ा के घोसले में नन्हे-नन्हे पंख उग रहे होते हैं. रास्तों पर उग रही होती हैं मंजिलें और मंजिलों पर एक नया ख़्वाब उगने को बेकरार होता है कि इसके बाद नये सफर की शुरुआत होनी है. धरती के हर कोने में हर वक्त कुछ न कुछ उग रहा होता है. और तो और जिस वक्त डूब रहा होता है सूरज किसी देश में ठीक उसी वक्त वो उग भी रहा होता है किसी दूसरे देश में. कहीं चांद भी उग रहा होता है ठीक उसी वक्त.

फिर आखिर क्यों कोई नाउम्मीदी से इस कदर भर उठा कि जीवन से बेजार हो गया. आखिर ये किसका खत है जो उम्मीद के न उगने की बात कह रहा था. कौन था वो, अब कहां होगा, क्या वो जीवन की वैतरणी को पार कर चुका होगा या कि बस उतरने ही वाला होगा उस नदी में. क्या ये अंजुरी भर शब्द उसकी जिंदगी की जिजीविषा के द्योतक नहीं हैं. क्या इन शब्दों से यह आवाज नहीं आ रही कि क्यों नहीं कोई आता और मुझे जिंदगी की तरफ घसीट लाता....

मैंने बहुत पूछा लोगों से, पता लगाने की कोशिश की कि ये किसका कमरा है. ये किसका खत है...लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. मैं समझ चुकी थी कि ये शब्द हम सबके हैं. कभी न कभी हम सब जिंदगी से यूं ही मायूस हो उठते हैं जिंदगी किसी कारा से कम नहीं लगती. और हम जिंदगी की इस कारा से खुद को आजाद कर लेना चाहते हैं. टेढ़ी-मेढ़ी इबारत में अपनी निराशाओं को दर्ज करते हैं कि अब बाकी नहीं रहा किसी उम्मीद का उगना और ठीक उसी वक्त कोई उम्मीद जाग रही होती है हमारे ही भीतर. पेपरवेट से दबे वो शब्द अपने अर्थहीन होने पर मुस्कुराते हैं और खिड़की के बाहर पीले फूलों में झलकती उम्मीद से लाड़ लगा बैठते हैं.

असल में जिंदगी वहीं कहीं सांस ले रही होती है, जहां कोई उम्मीद दम तोड़ती है. मैं उन निराशा से भरे शब्दों को उठाकर खिड़की के बाहर फेंक देती हूं और महसूस करती हूं कि मैं खुद अपने ही भीतर नये सिरे से उग रही हूं.

11 comments:

अनुपमा पाठक said...

अद्भुत है ये उगना...
इन शब्दों ने सींच दिया कुछ भीतर... और उग रही है एक उम्मीद भरी सांझ इधर भी!

प्रवीण पाण्डेय said...

देखो, जिन्दगी कितनी घनी है, फूल के साथ खरपतवार भी उगे हैं।

Nidhi said...

उम्मीद का संबल.....सकारात्मक अभिव्यक्ति !!

संध्या शर्मा said...

हाँ जिंदगी उगेगी बढ़ेगी फूलेगी और फिर फलेगी... बहुत सुन्दर विचार

***Punam*** said...

"नहीं, उम्मीद कभी उगना बंद नहीं करती कि बस हम उनके उगने पर अपनी निगाहों की बंदिश लगा देते हैं. आगे बढ़ते हुए कदम लगातार पीछे लौटाने लगते हैं. वजह कुछ भी हो, सृष्टि का यही नियम कि उगना कभी बंद नहीं होता......"


अंतत: सत्य यही है....!!

Swapnrang said...

its new. its different naya naya sa laga yeh ugna.feel good type.

dr.mahendrag said...

KITNA BHI NIRASH HO LEN, ZINDAGI KA UGNA, BADHNA, PHALNA PHOOLNA KAB RUKTA HAE,FARK NAZARIYE KA HAE. KABHI ACHHA LAGTA HAE TO KABHI NARAISYAPURNA

राजेश उत्‍साही said...

उम्‍मीद हर वक्‍त उगती है, हम ही हैं जो उसे संभाल नहीं पाते।

BS Pabla said...

विचारोत्तेजक अभिव्यक्ति

Pallavi saxena said...

सकरात्मक सोच लिए प्रेरणात्मक रचना....

dr.mahendrag said...

एक उमीदों से भरा जिंदगीनामा ,
प्रतिभाजी आपको बधाई