कुछ दिनों बाद महिला को अपने लिखे पर अफ़सोस होता है, और वह बाल्ज़ाक को फिर ख़त लिखती है, जिसमें उनके लेखन भूरि-भूरि प्रशंसा है. कुछ दिनों बाद और ख़त. और ख़त. लेकिन किसी में भी अपना नाम नहीं लिखती, पता नहीं लिखती. अंत में सिर्फ़ इतना- 'तुम्हारी, अजनबी.' लेकिन हर ख़त में वह यह ज़रूर कहती है कि मुझे जवाब देना. बाल्ज़ाक उसके सुंदर ख़तों का इंतज़ार करते हैं, लेकिन जवाब कहां दें? अगली बार महिला उन्हें वही आइडिया देती है, अख़बार में विज्ञापन छपवा कर जवाब देने का. वह किसी और अख़बार का नाम लेती है. बाल्ज़ाक उसमें विज्ञापन छपवाकर जवाब देते हैं.
अगले ख़त में महिला अपना परिचय और पता दे ही देती है- एवेलिना हान्स्का. वह एक पोलिश सामंत की पत्नी है, जो लगातार बीमार रहता है. वह उम्र में बहुत बड़े अपने पति की सेवा करती है और बाक़ी समय में बाल्ज़ाक की किताबें पढ़ती है. ख़तो-किताबत होती है और साल-भर में ही बाल्ज़ाक उसके प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन कर देते हैं. हान्स्का भी उनसे प्रेम करने लगती है. बाल्ज़ाक उस समय कुछ दूसरे प्रेम-संबंधों में हैं, लेकिन हान्स्का उनकी स्वप्नकन्या बन जाती है, जिसे उन्होंने नहीं देखा है.
अगले साल हान्स्का कुछ ऐसा मैनेज करती है कि बाल्ज़ाक स्विटज़रलैंड में उसके परिवार से मिलने आ जाते हैं. वह छद्म नाम से होटल में रहते हैं और पार्क में बैठ उनकी लिखी किताब पढ़ती स्त्री को देख मुग्ध हो जाते हैं. पांच दिनों में वह उस परिवार में घुल-मिल जाते हैं, पास के जंगल में भटकते हुए प्रेम करते हैं. अगले दो साल तक उनकी फुटकर मुलाक़ातें होती हैं.
हान्स्का अपने ख़तों में उन्हें नये उपन्यासों का आइडिया देती है. वह ख़ुद एक कहानी लिखना चाहती है, जो उसकी अपनी कहानी होगी, जिसमें वह अपने प्रिय लेखक से ख़तों में प्रेम करती है. वह उसे लिखकर जला देती है. तब बाल्ज़ाक कहते हैं कि यह कहानी तुम्हारे लिए मैं लिखूंगा. वह क्लासिक 'मोदेस्त मीग्न्यों' लिखते हैं.
1841 में बीमारी के कारण हान्स्का के पति मृत्यु हो जाती है. बाल्ज़ाक को लगता है कि अब वह हान्स्का से तुरंत शादी कर लेंगे, लेकिन वैसा संभव नहीं, क्योंकि हान्स्का ज़ायदाद के विवाद में फंस गई है. इस समय अगर वह शादी करेगी, तो उसे कुछ नहीं मिलेगा और पहले वह अपनी दोनों बेटियों का भविष्य सुरक्षित करना चाहती है. उसे अकेला जान कई लोग उससे प्रणय-निवेदन करते हैं, लेकिन वह सख़्ती से सबको मना करती है और बाल्ज़ाक से वफ़ा का वादा करती है. बाल्ज़ाक आग्रह करते हैं कि वे सब रूस चलें. ज़ार बाल्ज़ाक को पसंद करता है, वह ख़ुद हान्स्का से शादी करा देगा, लेकिन हान्स्का मना कर देती है.
1843 में हान्स्का को अख़बारों के ज़रिए वे ख़बरें मिलती हैं, जिनमें बाल्ज़ाक का नाम कई महिलाओं से जुड़ा बताया जाता है. वह बाल्ज़ाक से पूछती है, लेकिन वह साफ़ मुकर जाते हैं. एक के बाद एक कई झूठ लिखते हैं. हान्स्का हर झूठ को जज़्ब कर जाती है, लेकिन कहती है कि वह अपनी नौकरानी को ज़रूर घर से निकाल दें. उसे बार-बार लगता है कि बाल्ज़ाक उससे छल कर रहे हैं. वह बमुश्किल इस बात के लिए राज़ी होते हैं और एक दिन अचानक लिखते हैं कि नौकरानी ने उनके ख़त चुरा लिए हैं और उन्हें ब्लैकमेल कर रही है. हान्स्का को इस पर भी संदेह होता है, लेकिन वह कुछ नहीं कहती. एक दिन ख़त आता है कि उन्होंने हान्स्का के सारे ख़त जला दिए हैं, क्योंकि कोई भी उन्हें पढ़ सकता था. उन्होंने लिखा, ' ये पंक्तियां लिखते समय मैं इन काग़जों की राख देख रहा हूं और सोच रहा हूं कि पंद्रह साल का समय कितनी कम जगह घेरता है.'
अब तक उन्हें रूबरू मिले आठ साल बीत चुके थे. बहुत कोशिशों के बाद उनकी मुलाक़ात हुई. बाल्ज़ाक भीषण लेखक थे. लंबी बैठकों में लिखते थे. एक बार लिखने बैठे, तो 46-48 घंटे तक लिखते रहते थे. बीच में एकाध घंटे का ब्रेक. आर्थिक परेशानियां हमेशा रहती थीं और वह मदद के लिए हान्स्का की तरफ़ भी देखते थे. लेखन की इस मेहनत ने उनकी तबीयत बिगाड़ दी.
ज़ायदाद का निपटारा होने में छह-सात साल लग गए. तब तक वह ख़तों में ही प्रेम करते रहे. 1850 में एक दिन दोनों ने शादी कर ली. 18 साल तक शब्दों और ख़तों के ज़रिए एक-दूसरे से जुड़े रहने, इतने बरसों में बमुश्किल पांचेक बार कुछ घंटों के लिए एक-दूसरे से मिल पाने के बाद दोनों ने क़रीब दस घंटे का सफ़र पैदल और घोड़ागाड़ी में तय किया और समारोह में पहुंचे. और अगले ही दिन से दोनों की तबीयत ख़राब हो गई. शादी के सिर्फ़ पांच महीने बाद बाल्ज़ाक की मौत हो गई.
(गीत चतुर्वेदी की फेसबुक वॉल से उनकी अनुमति व आभार सहित)
5 comments:
दर्द नाक प्रेम कथा...
नीरज
प्रेम और दर्द एक ही सिक्के के दो पहलू हैं..
मार्मिक, प्रतीक्षा या मिलन।
जीवन में प्रेम के रुप और दर्द की उपस्थिति क्या होती है, यह पोस्ट उसी बयां करती है। शुक्रिया, सबसे साझा करने के लिए।
लगातार 46 -48 घंटे लिखना!!!...लेखन के लिए ऐसे ही डेडिकेशन की जरूरत होती है....
पर अक्सर लेखक ,एक सामान्य जिंदगी के सुख से वंचित ही रह जाते हैं.
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