Sunday, July 3, 2011

रिल्के, मरीना और एक सिलसिला... 7

इधर मारीना बिगड़ते हुए हालात को संभालने के लिए खुद को गहन दुख में डुबोने तक को तत्पर थी, उधर उसके भीतर का प्रेम हर लम्हा उसका जीना मुहाल किए था. वो यूं तो रिल्के को कोई पत्र नहीं लिख रही थी लेकिन असल में हर वक्त वो रिल्के से अनकहे संवाद में थी. आखिर तमाम वादों, चीजों को संभालने की उसकी जिद, किसी को दु:ख न देने की प्रबल इच्छाशक्ति पर प्रेम ही भारी पड़ा और उसने 3 जून को रिल्के को एक पत्र लिख ही दिया.

माई डियर राइनेर,
तुमने एक बार अपने किसी पत्र में लिखा था कि अगर मैं कभी गहन खामोशी में चला जाऊं और तुम्हारे पत्रों का जवाब न दूं, तब भी तुम मुझे लिखती रहना. मैंने इस बात का अर्थ यूं लिया मेरे प्रिय कि तुम्हें एक खामोश राहत की दरकार होती है जिसमें तुम आराम कर सको. मैंने खामोशी की वही राहत तुम्हें पिछले दिनों अता की. उम्मीद है अब तुम अपनी शान्ति को जी चुके होगे और मेरे पत्रों का बेसब्री से इंतजाऱ कर रहे होगे.

मेरे प्रिय, तुम्हारा साथ मुझे आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाता है और मेरे भीतर की समंदर की गहराइयों तक भी. तुमसे मिलना है खुद से मिलना और मिलना समूची कायनात से. जब मैं तुमसे बात नहीं कर रही होती हूं, असल में मैं तब भी तुमसे ही बात कर रही होती हूं. मैं तुमसे मिलना चाहती हूं रिल्के. मिलकर तुम्हें बताना चाहती हूं कि एक व्यक्ति किस तरह दूसरे व्यक्तिव का हिस्सा हो जाता है. जैसे कि तुम हो चुके हो. रात की गहन नीरवता में तुम्हें हर पल अपने करीब पाती हूं रिल्के और खामोशी के बियाबान में खुद को गुमा देती हूं.
उम्मीद है तुम अच्छे होगे.
प्यार
मारीना

यह पत्र मारीना ने रिल्के को लंबे अरसे बाद लिखा था और इसमें उसका रिल्के के प्रति प्रेम एक आवेग के रूप में बह निकला था. इस पत्र में उसने बोरिस के साथ घटनाक्रम का कोई जिक्र नहीं किया. हां, यह जरूर है कि इस पत्र को लिखने के बाद उसने एक लंबी पीड़ा से मुक्ति पाई.

एक तरफ मारीना रिल्के को पत्र लिखकर राहत महसूस कर रही थी और दूसरी ओर उसके भीतर यह उधेड़बुन जारी थी कि उसे बोरिस के साथ घटे घटनाक्रम के बारे में रिल्के को बताना चाहिए. आखिर 14 जून को उसने रिल्के को फिर से पत्र लिखा.

सुनो रिल्के,
न जाने क्यों मुझे लग रहा है कि मैं बहुत बुरी हूं. बहुत ही बुरी. पिछले दिनों की मेरी लंबी खामोशी इसी अहसास के चलते थी रिल्के. बोरिस को लगता है कि तुम्हें पत्र लिखकर और तुम्हारे करीब आकर मैंने उसे कोई धोखा दिया है. राइनेर...मैं सचमुच बुरी हूं मैंने उसका दिल दुखाया और पिछले पत्र में तुमसे इस बात का जिक्र भी नहीं किया. असल में मैं जब तुमसे बात करती हूं तो तुम्हें और खुद को खास और एकान्तिक माहौल में रखना चाहती हूं जहां हमें किसी और का ख्याल, कोई और बात छू भी न सके. लेकिन यह तो ठीक नहीं है ना राइनेर, तुम्हारे और मेरे बीच सब पानी की तरह साफ होना ही चाहिए इसीलिए आज तुम्हें यह पत्र लिख रही हूं. मैं अपनी जिंदगी में झूठ के लिए कोई जगह नहीं रखना चाहती हालांकि मेरे हिस्से में बहुतों के झूठ आये हैं, फिर भी. राइनेर, रिश्तों की ईमानदारी और सच्चाई पर विश्वास करती हूं. उम्मीद है तुम अपनी मारीना को समझ सकोगे.
प्यार
मारीना
(जारी...)

11 comments:

बाबुषा said...

दुखी मत हो मरीना ..उत्सव मनाओ !

siddheshwar singh said...

divy !

Rangnath Singh said...

बहुत अच्छी श्रृंखला चल रही है...मेरी सहानुभूती मरीना और पस्तारनाक के प्रति
बनती जा रही है..

Nidhi said...

बहुत दिनों की गहन चुप्पी के बाद जब बात कहने का अवसर मिले तो .....भाव ऐसे ही आवेग से निकलते हैं ...

varsha said...

आखिर तमाम वादों, चीजों को संभालने की उसकी जिद, किसी को दु:ख न देने की प्रबल इच्छाशक्ति पर प्रेम ही भारी पड़ा ....

दीपक 'मशाल' said...

sahi waqt aayega...

Geet Chaturvedi said...

वाह. अभी देखा यह. इन फैक्‍ट, मरीना की पूरी सीरिज पढ़ी यहां पर.
सुंदर काम कर रही हैं आप. मुझे बहुत सुखद लगा.
कई पत्रों को अच्‍छा कोट किया है आपने.
हालांकि रिल्‍के, मरीना और पास्‍तरनाक के त्रिकोण को सरलीकृत नहीं करना चाहिए, किसी एक के प्रति दोषीले वाक्‍य लिखकर. वह सब कुछ दुनियावी नहीं था. वे ख़त नहीं थे, तीन एक जैसी और अकेली आत्‍माओं के पंख थे. वह पूरी संगत अकेलेपन की चौपाल थी.
'योर डेथ' में मरीना ने बहुत सुंदर विश्‍लेषण किया है हर बात का. एक लाइन मुझे याद आती है- पता नहीं, कैसी स्‍मृति है मेरी--

kisses won't get through. not the lips (life) on the brow(death), but the brow (death) on the lips (life).
the brow--- refuses.

इनसे उन्‍हें समझने की दिशा मिलती है.

Pratibha Katiyar said...

शुक्रिया गीत जी! हौसला बढाया आपने. आपकी बात समझती हूँ...फ़िलहाल इस अकेलेपन की चौपाल पर अपने मौन की संगत ही रखती हूँ ...
यह मौन मरीना और पर्स्तेनाक वाली श्रंखला में खुद खुले तो बेहतर. हाँ, ये कोई त्रिकोड नहीं...

पीयूष पाण्डे said...

शानदार सीरिज..बेहतरीन कोशिश। लगी रहिए।

awara said...

babusha ne dtheek haha hai दुखी मत हो मरीना ..उत्सव मनाओ !

neera said...

कई दिनों से सोच रही थी और आज बोरिस, मरीना, रिल्के के ख़त पढ़ने का वरदान मिला.. एक सुखद अहसास से भर गई हूं रिल्के ने अपनी वसीयत में खतों को जलाने की हिदायत दी थी... उसके दोस्त मेक्स ब्रोड ऐसा नहीं किया वरना तो हम इस खजाने से वंचित रह जाते... आगे का इंतज़ार रहेगा..