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इस बार फिल्म थी काइट्स. लगभग सारे रिव्यू गला फाड़कर कह रहे थे कि फिल्म स्लो है, बोर है, कुछ नया नहीं है. सिर्फ डेढ़ या दो स्टार पा सकने वाली यह मूवी मुझे तो अच्छी लगी. और मैं रितिक रोशन की फैन भी नहीं हूं. अनुराग बासु ने इस लव स्टोरी को बहुत प्यार से बनाया है. कसा हुआ निर्देशन, चुस्त एडिटिंग, कमाल की सिनेमेटोग्राफी बांधे रखती है. रितिक और बारबरा की कैमेस्ट्री हो या कंगना और कबीर बेदी की प्रेजेंस सब कुछ परफेक्ट. फिल्म की लोकेशन कमाल की हैं. समुद्र के भीतर दर्शाये गये दृश्यों का तो जवाब ही नहीं. शायद ही कोई फिल्म हो जिसमें आई लव यू का इस्तेमाल न हो. लेकिन इस फिल्म में इन शब्दों का इस्तेमाल हर बार फिल्म में जान डाल देता है. बारबरा को न हिंदी आती है न अंग्रेजी. वो सिर्फ स्पेनिश बोलती है और समझती है. रितिक को स्पेनिश नहीं आती. (हालांकि दोनों एक-दूसरे की भाषाओं को पकडऩे की कोशिश करते हैं.) भाषाओं के पार दोनों किस तरह एक-दूसरे से कम्युनिकेट करते हैं यह देखने लायक है. फिल्म एक दूजे के लिए की याद ताजा हो जाती है.
ये लव स्टोरी, फूलों, पहाड़ों और झरनों के इर्द-गिर्द नहीं घूमती बल्कि गोले-बारूद, और जान बचाने की जद्दोजेहद के बीच जन्म लेती है और परवान चढ़ती है. एक-एक सांस के लिए तरस रहे घायल प्रेमी से जब उसकी प्रेमिका आंखों में सारी भावनाएं भरकर कहती है आई लव यू तब ये शब्द किसी मरहम से कम नहीं लगते. हां, फिल्म में बेहतर संगीत की गुंजाइश जरूर छूट गयी सी लगी. जिंदगी दो पल की...यही गाना गुनगुनाने को है.