Friday, August 21, 2009

सदी का सबसे बड़ा आदमी- 4

काशीनाथ सिंह

............इस ऐलान को करते हुए उनकी आंखों में आंसू थे और वे आंसू गालों पर ढुलक-ढुलक आ रहे थे कि वे तब तक किसी पर नहीं थूकेंगे, जब तक जुर्म करने वाला उसे भगाने वाला खुद सामने आकर कबूल नहीं करता.
इस ऐलान की बड़ी विकट प्रतिक्रिया हुई. इसे सुनते ही भीड़ के दक्खिनी छोर पर, जहां पकड़ी का पेड़ था और जिसकी डालें छोटे-बड़े अधनंगे शरीरों और सिरों से लदी हुई थीं, कोई बोला, हाय कुर्ता! दूसरे किसी छोर से एक और आवाज आई, हाय धोती, धीरे-धीरे हर कोने से आवाजें आनी शुरू हुईं और यह कीर्तन जैसा सुनाई पडऩे लगा, हाय कुर्ता, हाय धोती. हाय चावल, हाय रोटी.
कुछ जो चुपचाप खड़े थे और गा नहीं रहे थे, शक की निगाहों से आगे-पीछे ताक रहे थे और सबकी भलाई को देखते हुए आगे आने के लिए एक-दूसरे को उकसा रहे थे.
हुजूर, आखिरकार एक बूढ़ा आगे बढ़ा और दोनों हाथ उठाकर चिल्लाया, यह कसूर मेरा है.
शौक साहब ने अपनी आंखें पोंछी, कौन है तू?
उस अभागे का बाप! बूढ़ा बोला.
क्या करता है तू?
था तो हलवाहा हुजूर, लेकिन जब से जमींदारी गई, इसी नगर में रिक्शा खींच रहा हूं.
और तेरा बेटा? वह क्या करता है?
कुछ नहीं सरकार! आवारा और निकम्मा है. रात-रात भर दोस्तों से गप्पें लड़ाता है, घर से गायब रहता है और भी जाने क्या-क्या करता है?
इंकलाबी तो नहीं है?
पता नहीं हुजूर!
शौक साहब चुप-चुप उसे घूरते रहे. संतोष से उनकी आंखें चमक रही थीं, मगर ऐसा क्यों किया तैने?
हुजूर, वह मेरा खून है और मैं उसे जानता हूं. वह नहीं मरता. हरगिज नहीं मरता, लेकिन आप सरकार...वह हकलाने लगा. अगर आपको कुछ हो जाता,तो हम कहीं के न रहते.
लेकिन तैने दुनिया को जो बताया कि सरकार तेरे बेटे के मुकाबले कमजोर और बुजदिल हैं, उसके लिए क्या कहते हो?
बूढ़ा सोच में पड़ गया. उसने यह न सोचा था कि इसका मतलब ऐसा भी हो सकता है. उसने मदद के लिए उधर-उधर देखा. लोग-बाग पीछे से गर्दन उचका-उचकाकर देख रहे थे और उसे सुनने की कोशिश कर रहे थे.
सरकार, बुजदिल वह है, जो मैदान छोड़ दे, आप नहीं.
यह बात नहीं है बुड्ढे! शौक साहब कुछ देर सोचते रहे, साफ-साफ बोल, तैने किसकी जान बचाई? मेरी या अपने बेटे की?
अपने बेटे की हुजूर.
सो कैसे?
अगर आप न होते, तो ये लोग, जो चारों ओर फैले हुए हैं और कीर्तन कर रहे हैं, उसे जिंदा न छोड़ते?
पहले भी और अब भी?
अब भी?
यह भला क्यों?
यह इसलिए कि आप हैं, तो हम हैं आप नहीं तो हम कहां?
शौक साहब हंसे और बड़ी जोर की हंसी हंसे. उनका भारी शरीर जब शांत हुआ, तो बोले, बुड्ढे! बहुत चालाक है तू. मैं तेरे से खुश भी हूं और नाराज भी. खुश इसलिए कि तैने मेरी जान बचाई, लेकिन नाम मेरे बेटे का लिया और नाराज इसलिए कि तैने एक साथ सबको जलील किया. मुझे भी इस जम्हूरियत को भी और बेटे की बहादुरी को भी...तो बोल, तेरी मंशा क्या है? क्या चाहता है तू?
सरकार? बूढ़े ने सर झुका लिया.
वह चोबदारों के बीच खड़ा था और सोच नहीं पा रहा था कि क्या कहे? उसे सरकार के रुख का अंदाजा भी नहीं हा रहा था कि वे उससे क्या सुनना चाहते हैं? जब काफी देर तक बूढ़ा असमंजस में खड़ा रहा और कुछ न बोल सका, तो शौक साहब भीड़ की ओर मुखातिब हुए, लोगों उन्होंने भीड़ में ऐलान किया, वह नौजवान जहां कहीं भी हो, आकाश में हो तो आकाश से पाताल में हो तो पाताल से, धरती पर हो तो धरती से पकड़कर उसे हाजिर करो. जो हाजिर करेगा, वह बख्शीश का हकदार होगा. जाओ.
भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी. लोग दौड़ते-धूपते न$जर आने लगे. शौक साहब ने अपने ऐलान में पांच दिन की मोहलत दी थी कि इस दौरान वे यह विचार करेंगे कि थूकने का कार्यक्रम आगे भी चलाया जाए या बंद कर दिया जाए. उनकी इस धौंस ने हर आदमी को चुस्त और बेचैन कर दिया था.
देखते-देखते गली सूनी हो गई।
क्रमशा

5 comments:

rohit said...

Congratulations for posting a fantastic story. Badhiya
Rohit Kaushik

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी कहानी है अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा आभार्

अशरफुल निशा said...

Sachmuch kaashi ji bade rachnaakaar hain.
Think Scientific Act Scientific

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया लगा।
आगे भी लिखती रहें।
बधाई।

sandhyagupta said...

Agli kadi ka intzaar hai.