Friday, August 14, 2009

काशी कक्का की कहानियां

बचपन की यादों में बाकी स्मृतियों की तरह एक स्मृति जो जमकर बैठी है वो है अलाव. मुझे रात का खाना खाने की जल्दी सिर्फ इसलिए होती थी कि खाने के बाद अलाव का माहौल बनता था. अलाव के इर्द-गिर्द लोगों का जमावड़ा. शुरुआत कुछ गप्पबाजी से होती लेकिन हम बच्चों के इसरार के आगे जल्दी ही बड़े लोग झुक जाते और उनकी गाड़ी कहानियों के ट्रैक पर लौट आती. रोज एक से एक कहानियां. ऐसा रोचक संसार, ऐसी-ऐसी फैंटेसी कि ठंड की वे लंबी रातें न जाने कब बीततीं, पता भी न चलता. डांटे कौन, डांटने वाले खुद कहानियों के संसार में गोते लगा रहे होते थे. कई बार नींद हमें उड़ा ले जाती और हमारी कहानियां अधूरी रह जातीं. सुबह उठते ही हम घूम-घूमकर उन लोगों का सर खाते जो रात में अलाव पर थे. उसके बाद क्या हुआ...राक्षस ने क्या किया...क्या राजा मर गया...राजकुमारी ने अपनी जान कैसे बचाई...वगैरह.

आज बचपन का वही मंजर जैसे फिर से लौट आया था. मौका था काशीनाथ सिंह और अखिलेश की कहानियों के पाठ का. यूं कभी-कभार कहानी पाठ सुने हैं मैंने लेकिन आज माहौल बड़ा अपना-अपना सा लगा. हालांकि अलाव कहीं नहीं था. न उसके आसपास चाचा, ताऊ, बाबा, दादा थे. फिर भी न जाने क्यों कहानियां, उनके कहे जाने का ढंग और सैकड़ों की संख्या में वाल्मीकि रंगशाला के एयरकंडीशंड हॉल में बैठे लोग वैसे ही लग रहे थे. उनकी तन्मयता भी वैसी ही थी. बीच-बीच में हुंकार जरूर नहीं लग रही थी. लेकिन कहानियों के मूड के साथ आते लोगों के रिएक्शंस हुंकार से ही लग रहे थे. मुझे याद है कि जब नाना कहानी सुनाते थे और कोई हुंकार न लगाये तो वो बहुत नारा$ज हो जाते थे. आज वो हुंकारे भी याद आ रहे थे.

इस अपने से माहौल में जिसे साझी दुनिया ने रचा था कहानियों का रंग जमना ला$िजमी थी. कुछ कहानियों की मजबूती और कुछ उनके कहे जाने का ढंग पूरे माहौल को खुशनुमा बना रहे था. अखिलेश की कहानी अंधेरा में सांप्रदायिक दंगों के बीच प्रेम को बचाने की कोशिश का चित्रण था. धर्म कई बार सर उठाता और कई बार किनारे पड़ा न$जर आता है. सांप्रदायिक ताकतों से प्रेम को बचाने की कोशिश करते युवक की बेबसी कई सारे सवाल छोड़ती है. कहानी में कथ्य के साथ बिम्ब और रूपकों का सुंदर चित्रण है. काशीनाथ जी ने इस मौके पर दो कहानियां पढ़ीं. पहली कहानी बांस और दूसरी इस सदी का सबसे बड़ा आदमी. इन दोनों कहानियों को भी वहां बैठे लोगों ने मंत्रमुग्ध कर लिया. इस सदी का सबसे बड़ा आदमी ने जहां पूरे माहौल को बेहद हल्का-फुल्का बनाते हुए किस्सागोई का पूरा लुत्फ दिया वहीं समाज के विद्रूप चेहरे को बेनकाब भी किया.

इस कहानी पाठ का असर है या कहानियों को सहेज लेने का लालच कि काशी जी से उनकी किताब मांगने को लोभ संवरण कर पाना मुश्किल ही था. अपनी चिर परिचित सहजता और स्नेह के साथ उन्होंने किताब सौंपी तो तसल्ली हुई. उनकी कहानी इस सदी का सबसे बड़ा आदमी अगली पोस्ट में यहीं दिखेगी.
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना!

2 comments:

सुशीला पुरी said...

स्वतंत्रता दिवस की तुम्हे भी बहुत बहुत बधाई , साझी दुनिया के तत्वावधान में हुई गोष्ठी में काशीनाथ जी व अखिलेश जी का कहानी पाठ सचमुच हम जैसे पाठकों के लिए बेहद आनंद का पल था ,मै तो मंत्रमुग्ध सुनती
रही पूरे समय ,यकीनन यदि कहानी सुनाई न जा सके तो वो कहानी नही ,उन अलाव वाले दिनों की याद ताजा हो गई .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
श्री कृष्ण जन्माष्टमी और स्वतन्त्रता-दिवस
की हार्दिक शुभकामनाएँ।