Tuesday, July 28, 2009

आदतन हमने ऐतबार किया

सब्र हर बार अख़्ितयार किया
हम से होता नहीं, ह$जार किया

आदतन तुम ने कर दिये वादे
आदतन हमने ऐतबार किया

हमने अक्सर तुम्हारी राहों में रुक के
अपना ही इंत$जार किया

फिर न मांगेंगे जिंदगी या रब
ये गुनाह हमने एक बार किया।
- गुलज़ार

11 comments:

Drmanojgautammanu said...

फिर न मांगेगें जिंदगी या रब

ये गुनाह हमने एक बार किया । अति सुन्दर । धन्यबाद !

नीरज गोस्वामी said...

गुलज़ार साहेब को जितनी बार पढिये कम है...शुक्रिया आपका.
नीरज

ओम आर्य said...

gulajar sahab ki her ek rachana mere aatma se hokar gujar jati hai .....bahut badhiya.......sundar

ओम आर्य said...

gulajar sahab ki her ek rachana mere aatma se hokar gujar jati hai .....bahut badhiya.......sundar

Vinay said...

निहायत मासूम रचना
----------
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा

Udan Tashtari said...

आभार गुलज़ार साह्ब को पढ़वाने का.

के सी said...

आह ज़िन्दगी ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"फिर न मांगेंगे जिंदगी या रब
ये गुनाह हमने एक बार किया।"

गुलज़ार साहब कीइस खूबसूरत गज़ल को
प्रकाशित करने के लिए,
बधाई।

RAJNISH PARIHAR said...

bahut hi khoobsurat rachna....

सुशीला पुरी said...

gajab........