Monday, September 9, 2019

'कोई था जो लड़ रहा था.'- रवीश कुमार



भावुक दिन है आज. अवतार सिंह पाश का जन्मदिन है और आज ही रवीश कुमार को मनीला में रमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया है. चाटुकारिता और टुच्चेपन की तमाम हदें तोड़ते पत्रकारिता के काले समय में रवीश का होना उम्मीद का होना हमेशा से रहा. उस उम्मीद का सम्मान सुखद है.

सम्मान समरोह के उस बड़े से हॉल में तालियों की गडगडाहट के बीच अपनी विनम्र और संकोची मुस्कान में सजे धजे रवीश को देखना ऐसा सुख था जो पलकें भिगोता है. मुझे याद है प्राइम टाइम देखने के बाद अक्सर माँ का कहना 'उससे कहो, अपना ख्याल रखे. बहुत चिंता होती है. ' माँ ट्विटर नहीं देखतीं वो फेसबुक पर भी नहीं हैं. लेकिन वो समय की नब्ज़ को समझती हैं.
आज माँ खुश हैं. भावुक हैं.

जहाँ एक तरफ अपने ही देश में उन्हें जान से मारने की धमकियां दी जा रही हों वहीँ दूसरी ओर उसी देश के नागरिकों तक सही और जरूरी सच्ची खबरों पहुँचाने की जिद के चलते उनका सम्मान किया जाना मामूली बात नहीं है.

जब रवीश हर दिन खबरों के लड़ रहे थे, झूठी खबरों के मायाजाल को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे, धमकियां सुन रहे थे, ट्रोल हो रहे थे और बिना हिम्मत खोये, बिना हौसला डिगाए लगातार आगे बढ़ रहे थे तब वो नहीं जानते थे कि उन्हें ऐसा कोई सम्मान भी मिलेगा.

ईमानदार कोशिश अपने आप में काफी बड़ी चीज़ है. सही कहा सुदीप्ति तुमने 'रवीश का यह कहना कि हार लड़ाई जीतने के लिए नहीं लड़ी जाती कुछ लड़ाईयां इसलिए लड़ी जाती हैं कि कोई था जो लड़ रहा था'. हाँ सचमुच लड़ाईयां इसलिए लड़ी जाती हैं कि लडे बिना रहा नहीं जाता. कि वक़्त जब उस समय का हिसाब मांगे तो सिर्फ और सिर्फ अँधेरा ही न दिखे एक उम्मीद भी दिखे, उम्मीद जो कहे 'कोई था जो लड़ रहा था.'

रवीश जी आपने देश का सर ऊंचा किया है. आपने उम्मीद पर आस्था को बचाया है. आपने मेरी माँ जैसी और बहुत सारी माओं की चिंता में जगह बनाई थी उन सबको आज मुस्कुराहट का तोहफा दिया है.

बहुत बधाई आपको !

2 comments: