Saturday, July 14, 2018

‘नहीं, कभी नहीं’ के उस पार



इन दिनों वॉन गॉग साथ रहते हैं. सुबह की चाय हम साथ पीते हैं, शाम को हम एक साथ देखते हैं थके हुए सूरज का घर जाना और आसमान पर रंगों का खेल. रात हम बारिशों की धुन सुनते हैं. हम साथ होते हैं लेकिन खामोश रहते हैं.

मुझे यूँ चुप होकर साथ रहने वाले दोस्त अच्छे लगते हैं. रात भर बारिश हुई. गॉग और मैं इस बारिश की बाबत खामोश रहे. वो इस वक़्त प्रेम पर अटके हुए हैं, शायद मैं भी. ‘इस वक़्त’ के बारे में सोचकर ‘किस वक़्त नहीं’ मुस्कुरा रहा है.

यूँ प्रेम पर अटके होने का अर्थ है, उदासी के निकट होना. उदासी बरस जाए तो राहत हो, शायद इसीलिए मुझे बरसना पसंद है, गॉग को रंग बनकर बिखरना. हम दोनों एक दीवार के इस पार हैं जिसे उसने ‘नहीं, कभी नहीं’ की दीवार का नाम दिया है. वो बोल रहा है, मैं चुप हूँ. प्रेम में ‘नहीं, कभी नहीं’ की दीवार चाइना वॉल से भी बड़ी और मजबूत लगती है. लेकिन दीवार के इस पार खड़ा प्रेम, हमेशा उस पार के ‘नहीं, कभी नहीं’ के आगे सजदे में रहता है. पीसा की मीनार ने क्या पता इन प्रेमियों से झुककर रहना सीखा हो.

वॉन गॉग थियो को लिखी अपनी चिठ्ठियों में लिखते हैं, ‘‘तुम बतलाओ कि क्या तुम्हें यह विस्मित नहीं करता कि कोई प्रेम इतना गंभीर और भाव-प्रवण हो सकता है कि कैसे भी बर्फीले ‘नहीं, कभी नहीं’ के बावजूद निष्कम्प जलता रहे? मुझे तो लगता है कि यह अत्यंत ही स्वाभाविक और सामान्य है.’’

यह स्वाभाविक और सामान्य होना सबके हिस्से नहीं आता, ठीक उसी तरह जिस तरह प्रेम सबके हिस्से नहीं आता. तो इस प्रेममय उदासी के अपने जीवन में आने के प्रति आभारी होना चाहिए हमें. लेकिन हम तो शिकायत से भर उठते हैं.

गॉग कहता है, ‘’प्रेम इतना सुदृढ़, सच्चा और सकारात्मक भाव है कि इसमें अपनी भावनाएं वापस लेना उतना ही असम्भव है जितना अपने प्राण ले लेना.’ मेरा जीवन और मेरा प्रेम दोनों एक हैं. मेरे लिए फ़िलहाल यह ‘नहीं, कभी नहीं’ बर्फ की एक सिल्ली है, जिसे मैं अपने सीने के ताप से पिघलाने में जुटा हूँ.’

गॉग की तरह शायद बहुत सारे प्रेमी अपने सीने के ताप से ‘नहीं, कभी नहीं’ की बर्फ की सिल्ली को पिघलाने की कोशिश में होंगे. शायद न भी हों. गॉग ने अपने रंगों और लकीरों को जीवन से लिया है. उसने जिन रंगों का प्रयोग किया वो दुकान से लिए भले ही गए होंगे लेकिन उन्हें जीवन के, महसूसने के पानी में घोलकर उसने रचा वो अद्भुत है. उसने बिना जिए एक लकीर भी नहीं खींची, यूँ ही सांसों को आने-जाने का क्रम होने से बचाकर रखा, जिया उसने शायद तभी उसने ‘नहीं, कभी नहीं’ की दीवार के आगे ‘वही और दूसरी कोई नहीं’ की लकीर खींच दी. उसने थियो को लिखा, ‘मैं इसे कमजोरी न मानकर ताकत मानता हूँ. वह मेरा एकमात्र आधार है जिससे मैं हटना नहीं चाहता.’

‘नहीं, कभी नहीं’ का विलोमार्थी क्या होता होगा. गॉग ने इस विलोमार्थी को ‘वही, और कोई नहीं’ से गढ़ा. उसने भाई को लिखा कि, ‘अगर तुम्हें कभी प्रेम में ‘नहीं, कभी नहीं’ सुनने को मिले तो उसे चुपचाप स्वीकार मत करना.’

तो चुपचाप न स्वीकार करने का क्या अर्थ है आखिर, युद्ध करना, किससे, ‘नहीं कभी नहीं’ से या ‘वही और कोई नहीं’ से. अक्सर लोगों को इन दोनों के ही आगे घुटने टेकते पाया है. आज जो ‘वही, और कोई नहीं’ है कल वह ‘कोई और’ किस तरह हो जाता होगा मालूम नहीं. कभी-कभी लगता है, ‘नहीं, कभी नहीं’ की दीवार से टकराना हमारे भीतर का कोई ईगो तो नहीं. तब तक उससे टकराना जब तक वो टूट न जाए. एक बार जो वो टूट गया तब? इसके आगे एक गहन शांति है. इस ‘नहीं, कभी नहीं’ का होना असल में हमारे होने को बचाए हुए है. यही उम्मीद है. गॉग कहते हैं कि, ‘’हम हमेशा यह बतलाने की स्थिति में नहीं होते कि वह क्या है जिसने हमें ढांप रखा है, बंदी बना रखा है. जो हमें दफन किये देता है, हालाँकि हम उन चट्टानों, उन दरवाजों, उन दीवारों को बखूबी महसूस करते हैं. क्या यह सब हमारी कल्पना या फंतासी है? मुझे नहीं लगता और मैं पूछता हूँ, हे ईश्वर! यह कितनी देर चलेगा, क्या आजीवन ऐसा ही कोहरा बना रहेगा? तुम जानते हो इस कारावास से मुक्ति कहाँ है? केवल एक सच्चे और गहरे प्रेम में.’’

सच्चा और गहरा प्रेम. क्या इसके अलावा भी कोई प्रेम होता है. प्रेम है तो उससे बड़ा सच कोई नहीं और उसकी गहराई आपको उदास सागर में डुबो देगी. ऐसे ही आता है प्रेम, सब ध्वस्त करते हुए. यही निर्माण की प्रक्रिया है. बिना प्रेम में पड़े हुए लोगों को कभी मालूम नहीं होता कि उन्हें प्रेम नहीं हुआ है, उन्हें उम्र भर मालूम नहीं होता इसलिए वो उदासी को प्रेम नहीं पढ़ पाते और प्रेमियों को ‘दुखी आत्मा’ कहते हैं. जबकि असल में वो सुखी आत्माएं ही हैं.

गॉग लिखते हैं, ‘’इस प्रेम की शुरुआत से जैसे यूँ लग रहा था कि इसमें मुझे खुद को पूरा झोंक देना है. बिना आगा पीछा सोचे, यूँ कूद पड़ने में ही थोड़ी उम्मीद है. पर फिर मैं थोड़ी या अधिक उम्मीद के बारे में क्यों सोचूं. प्रेम करते वक्त क्या मुझे यह सब फालतू बातें याद रखनी चाहिए. हरगिज नहीं. हम प्रेम करते हैं क्योंकि हम प्रेम करते हैं. बस. कल्पना करो कि एक स्त्री क्या सोचेगी यदि उसे पता चले कि सामने वाला उससे प्रेम निवेदन तो कर रहा है किन्तु एक हिचक के साथ. क्या तब उसका उत्तर ’नहीं, कभी नहीं’ से अधिक कठोर न होगा? ओह थियो, छोड़ो. कुछ और बात करते हैं. प्रेम तो सिर्फ प्रेम है, उसके आगे पीछे कुछ नहीं. उसमें डूबा हमारा मन एकदम साफ़ चमकीला और खुला होता है, न भावनाएं छुपाई जाती हैं न आग बुझाई जाती है. केवल एक सहज स्वीकार- खुदा का शुक्र है यह मोहब्बत है!”

ह्म्म्म खुदा का शुक्र है कि मोहब्बत है. खुदा का शुक्र है कि है ‘नहीं, कभी नहीं’ भी. क्या हमने प्रेम में पड़े हुए लोगों के साथ पेश आना सीखा है. क्या हमने मनुष्य के तौर पर किसी दूसरे मनुष्य के साथ पेश आना भी सीखा है? हम लोगों के सुखों को दुखों में बदल देने में माहिर लोग हैं शायद इसीलिए प्रेमी अपना एकांत गढ़ लेते हैं. दुःख का एकांत. जहाँ प्रेम, उदासी, ईश्वर, सब साथ रहते हैं. गॉग का यह कहना विभोर करता है कि, ‘’तुम मुझे इस ‘नहीं, कभी नहीं’ पर बधाई दो.’’

हम सांत्वना देते हैं इश्क में दुःख को जीते व्यक्ति को, हम उसे बधाई नहीं देते, गॉग सिखाता है हमें कि प्रेम में डूबे व्यक्ति से किस तरह पेश आना चाहिए. क्योंकर सोचना विचारना, क्या हो जाएगा उससे. कि प्रेम तो मृत्यु की तरह अनपेक्षित है. आपका बस तो उस पर चलना है नहीं तो आने दो उसे यूँ ही अपने बहाव में. सुनो ध्यान से कि ‘’जब भी प्रेम में पड़ो- बिना किसी हिचक के उसके साथ बह जाना. या फिर यूँ कहें कि जब तुम प्रेम में पड़ोगे तो तुम्हारी सारी हिचकिचाहट अपने आप ही दूर हो जाएगी. इसके अलावा जब तुम प्रेम करोगे तुम पहले से ही अपनी सफलता के प्रति आश्वस्त तो नहीं होओगे पर बावजूद इसके मुस्कुराओगे.’

‘’कुछ भी हमें जीवन के यथार्थ के उतना करीब नहीं ले जाता, जितना सच्चा प्रेम. सच मानो, प्रेम के छोटे-छोटे दुःख भी मूल्यवान हैं.’’ इसलिए किसी की सिसकियों पर आंसुओं में डूबे चेहरे पर कभी तरस मत खाओ उसे प्रेम से देखो और उसके सुख को महसूस करो.

एक जन्म माँ बाप देते हैं, दूसरा जन्म देता है प्रेम. कि जीवन के अर्थ बदलने लगते हैं समूची सृष्टि को प्रेम और सद्भाव से भर देने की इच्छा प्रेम ही तो है. कि ‘’जबसे मैंने प्रेम के असली स्वरूप को जाना है, मेरे काम में सच्चाई बढ़ी है.’’

यह सच्चाई सिर्फ काम में नहीं जीवन में भी बढ़ी है शायद, इसे बढ़ना ही है और...और..और... बस कि प्रेम पर भरोसा रखना!

(पढ़ते हुए वॉन गॉग के खत, भाई थियो के नाम)

पुस्तक- मुझ पर भरोसा रखना
अनुवाद- राजुला शाह
प्रकाशक- सीज़नग्रे

https://www.prabhatkhabar.com/news/novelty/diary-of-a-writer-pratibha-katiyaar/1182628.html

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

पढ़ लेना खत आज के समय बड़ा काम है। सुन्दर।

radha tiwari( radhegopal) said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-07-2018) को "बच्चों का मन होता सच्चा" (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी

Dharmesh said...

very interesting blog
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