Sunday, September 13, 2020

सितम्बर का प्यार



ठीक उस वक़्त जब आप देख रहे होते हैं
ढलता हुआ सूरज
और महसूस करते हुए अपने भीतर
उतरता हुआ कोई गहराता अकेलापन
चाय की प्यालियों के ठीक बगल में बैठकर
चुपके से मुस्कुराता है सितम्बर का प्यार

वो बदलते मौसम की करवट बन आता है
और उम्र भर के लिए
ठहर जाता है जीवन में
प्रेम का मौसम बन

आकाश से झरती नर्म चांदनी बन
रोयों पर बैठ जाता है
और सजदे में झुक जाता है
कायनात का ज़र्रा ज़र्रा

वो नजर से नज़र चुराकर चलता है साथ-साथ
नज़र आता भी नहीं,
दूर जाता भी नहीं

रास्तों में फूल बनकर बिखर जाता है कभी
तो कभी चढ़ जाता है
वनलता बन दरख्तों पर लहराते हुए

खेतों में धान की फसल बन लहलहाता है
तो रहट की आवाज़ बन कानों में घुल भी जाता है
चुप्पियों में खूब बोलता है सितम्बर का प्यार
आवाजों में खामोश हो जाता है

टहनियों में टंगे चाँद को ताकता है रात भर
ओस बन फूलों पर बरसने को समेटता है
जमाने की बची खुची नमी

दरवाजे पर दस्तक कोई नहीं
न आहट कोई
बस सिरहाने रखी 'नदी के द्वीप' पर
लगने लगा है स्मृतियों का ढेर. 

वो जुलाई से करता है अभ्यास आने का
अगस्त में जुटाता है हिम्मत धीरे-धीरे
सितम्बर में दाखिल होता है हिचकते हुए
और मध्य सितम्बर में सकुचाते हुए
छलक ही पड़ता है पलकों की कोरों से
फूट पड़ती है सदियों से रुकी रुलाई
और कायनात डूब जाती है असीम सुख में

नजर कोई नहीं आता दूर तक फिर भी
कलाई का श्यामल रंग गुलाबी हो उठता है
महक उठते हैं जीवन के सारे सितम्बर

सितम्बर के प्रेम का
पूरे ग्यारह महीने इंतजार करती है सृष्टि

सितम्बर के प्यार से हाथ भले छूट जाए
लेकिन वो साथ कभी नहीं छोड़ता।

6 comments:

Onkar said...

बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर।
हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।

RAHUL SRIVASTAVA said...

आत्मा से महसूस की गई पंक्तियां

Pammi singh'tripti' said...


आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Rishabh Shukla said...

बेहद शानदार

Sudha Devrani said...

टहनियों में टंगे चाँद को ताकता है रात भर
ओस बन फूलों पर बरसने को समेटता है
जमाने की बची खुची नमी
वाह!!!
बहुत सुन्दर सरस मनभावन सृजन।