Saturday, March 7, 2009

मेरे हुए सारे पलाश!

मेरे घर से ऑफिस के बीच कई सारे पलाश के पेड़ पड़ते है। इन दिनों पलाश के पेड़ फूलों से जिस कदर लदे नजर आते हैं, मन वहीँ कहीं अटक सा जाता है। ऐसा लगता है हम तो वहां से चले आते हैं पर हमारा एक हिस्सा वहीँ कहीं ठहर जाता है। दिल में रोज ये ख्याल आता की कभी तो कोई पलाश टूटकर मेरे ऊपर गिरे। मन तो ये भी करता की गाड़ी किनारे खड़ी करुँ और ढेर सारे पलाश अपने आँचल में भर लूँ। लेकिन एक झूठमूठ का वहम घेर लेता की लोग क्या कहेंगे। लेकिन मेरी उन फूलों से रोज बात होती थी। मैं उनसे मन ही मन शिकायत करती की तुम्हें मेरे पास आने से किसने रोका है, तुम्हें कोई कुछ भी नहीं कहेगा.... मन में कितनी ही बेचैनिया हों इन रास्तों से गुजरते हुए इन दिनों मन अपने आप महक उठता है । कितनी छोटी-छोटी सी होती हैं ख्वाहिशें और उससे भी छोटी होती हैं उन तक पहुँचने के दरमियाँ की वजहें। हम उन्हें पार ही नहीं कर पाते। इसीलिए जिंदगी इतने करीब होते हुए भी हमसे दूर चली जाती है। खैर, अब तक जो मेरी बात होती थी उन पलाश के फूलों से, वो जाया नहीं गई। कल जैसे ही मैं उन फूलों के करीब से गुजर रही थी एक प्यारा सा फूल, पलाश का फूल मेरे सर पर गिरते हुए आँचल में ठहर गया। यकीन नहीं आता न, लेकिन सचमुच कभी-कभी ऐसा हो जाता है। बात बहुत जरा सी है लेकिन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जैसे कोई सपना पूरा हो जाना, जैसे कोई खजाना मिल जाना, जैसे जिंदगी से मुलाकात हो जाना, जैसे किसी ने मौसम भेज दिया हो तोहफे में। ऐसा लगा की अब से दुनिया के सारे पलाश के फूल मेरे हुए। मानने में क्या हर्ज है, खुश होने में क्या हर्ज है? जाने क्यों पलाश के फूल मुझे बचपन से ही बड़े अच्छे लगते हैं। बचपन में कोई कहानी सुनी थी की एक लड़की का प्रेमी उसे वादा करके गया था की जब पलाश का पेड़ फूलों से भर जाएगा तब वो जरूर लौटेगा। वो लड़की पूरे साल, एक-एक दिन पलाश के पेड़ को बड़ी उम्मीद से ताकती है, उसके लिए वो फूल नहीं, जिंदगी थी.....फूल खिले....खूब खिले.....प्रेमी लौटा की नहीं....ये तो अब याद नहीं लेकिन उस लड़की का इंतजार, और पलाश के फूलों की अहमियत मेरे साथ हो ली। जब भी इन फूलों को देखती हूँ लगता है कहीं किसी का इंतजार फल रहा है....पलाश के फूल बहुत कम समय के लिए ही खिलते हैं। अब तक जल्वेरा या रेड रोजेस की तरह इन्हें फूलों की दुकानों पर बिकते भी नहीं देखा। भला इतनी अनमोल नियामत कोई कैसे खरीद पायेगा। इसकी कीमत तो सदियों के इंतजार में, जन्मों की मोहब्बत पिरोकर ही अदा की जा सकती है। वो लड़की अपने इंतजार में गाया करती थी की जब जब मेरे घर आना तुम, फूल पलाश के लिए ले आना तुम.....
बहरहाल, कल की एक छोटी सी बात ने बड़ी सी खुशी दी....ऐसी ही तो है जिंदगी.....छोटी-छोटी बातों में बड़ी-बड़ी-बड़ी खुशियाँ.....

3 comments:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

बहुत खूब---
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
शब्दकार

Anonymous said...

मोहब्बत और जज्बातों से भरे एक फूल की ख्वाहिश.....
लिखने का हुनर है या फिर खुशियों की आज़माईश...

बहुत खूब..शायर की आँखों से देखो जिंदगी के मायने बदल जातें हैं.

पारुल "पुखराज" said...

palash se palash tak ...aa pahunchi...:)